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इंसानियत
इंसानियत की जाति नहीं कोई धर्म नहीं, कोई ओहदा नहीं होता है
यह तो सर्व धर्म से ऊपर ख़ुदा के करीब होने का ज़ज़्बा होता है
कितनी सादगी और ईमानदारी से हर इंसान मिलकर रहता था
इंसानियत ही सबसे बड़ा मज़हब और उनका पहला कर्म होता था

ना पैसा ना दौलत ना शौहरत किसी को कभी खींच सकती है
इक इंसानियत ही है जो इंसान को इंसान के नज़दीक लाती है
जाने कितनी मन्नतों कोशिशों के बाद ख़ुदा ने इंसान बनाया है
मग़र इंसानियत को शर्मिंदा कर इंसान ने घिनौना रूप दिखाया है

हर किसी को एक दूजे के काम आना चाहिए, मग़र गँवारा नहीं
सब नीचा दिखाने के लिए अपना मौका आने का इंतज़ार करते हैं
ए इंसान, तेरे कर्म देखकर ख़ुदा तुझे बनाकर शर्मसार हो रहा होगा
उससे क्या और कहाँ ख़ता हुई, चुप बैठ कर यही सोच रहा होगा

चारों ओर एक दूजे को धोखेबाज़ कह ईमानदारी की दुहाई दे रहे हैं
समझ नहीं आता, वो कौन लोग है जो सामने वाले को धोखा दे रहे हैं
सभी तो यहाँ सच्चे और भले होने का दम भर कर, नाटक कर रहे हैं
कौन है जो झूठ और फ़रेब से सबका गला खुलेआम काट रहे हैं

मुँह में राम बगल में छुरी, भोली सूरत लेकर संग संग चल रहे हैं
क्यों आज रुपये पैसे की ख़ातिर अपना ईमान धर्म बेच रहे हैं
क्या इंसान कमज़ोर मज़बूर हो गया कि बैसाखी का सहारा ले रहा है
इन सब औज़ारों को इस्तेमाल कर, रौंद कर सबसे आगे निकल रहा है

हर कोई इंसानियत का पाठ पढ़ा कर, समाज में वाहवाही लूट रहा है
इंसान ही इंसान को धक्का दे भेड़चाल में प्रथम आने की कोशिश कर रहा है

© सुधा सिंह 💐💐