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नायक द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं प्रश्नवाचक के शमक्श रचना पेशकारी द्वारा दिखाते हुए।।
अब आइए जानते हैं कि लेखक एवं प्रश्नवाचक के आदेशानुसार नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी राजपूत द्वारा अपनी रचनाओं के नामों का वर्णन कठित करते पेशकार को रचना चित्ररांक करने को कहता है, मगर उससे पहले लेखक प्रश्नवाचक द्वारा प्रश्नावली से प्रश्न खड़े कर दिए जाते हैं जिसके चलते नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी राजपूत को पशेकार के बाद एक और अन्य की जरूरत होती है जो एक प्रसिद्ध नगरी से बुलवाया जाता खैनीदाबाद
और जैसे नायक बोलता चित्रकार वैसे वैसे चित्र बनाकर तैयार कर लेता है और पेशकार द्वारा नायक -कृष्णानन्द उसकी प्रस्तुती करने को तैयार हो जाता है।।
पहली रचना 1-गुनाहो का देवता -मज़बुरी 📝
दूसरी रचना २-नायक के काले गुनाहों के साछय का वारंट 📝
तीसरी रचना ३-हर वैशया के साथ संबंध बनाने वाला व्यक्ति गलत नहीं होता।।📝
और फिर वो नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी राजपूत अपनी जुबान से अपनी रचनाओं का वर्णन विस्तार से जानकारी पहुंचाते हुए लेखक द्वारा प्रशनवाचक की अदालत में प्रस्तुति पेश करता है और मुख्य न्यायाधीश एवं प्रश्नवाचक दृष्टि से इसे सुना जाता रहा होता हैं,

प्रश्नवाचक तथा मुख्य अतिथि के द्वारा उसे यह कहा कि हमने तुमहारी स्तुतियां जमा तथा स्वीकार की है, मगर मुख्य न्यायाधीश बोले हे भमृणकारी सर्वप्रथम हम तुम्हारे मुख तुमहारी व्यथा सुनना चाहते हैं और फिर उनके आदेशानुसार वो भृमणगीय अपनी त्री कथा आरंभ कर सुना क्या व्यथा है तेरी।।

फिर भृमणगीय अपनी जुबान पहली रचना का वर्णन कर अपने कर्मों से मुक्त होने की प्रथना करता जिसका विषय था (गुहानो का देवता नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी राजपूत 👹)।। और अपनी ग़लती विधाता से पूछता उनके चरणों में सिर चुककर बैठ गया है।।

और फिर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के आदेश पर उसने अपनी प्रथम श्रेणी की पहली रचना की
पेशकश करते हुए साहब मेरी पहली प्रस्तुति का
विषय है "गुनाहों का देवता 📝"साहब यह मेरी पहली प्रस्तुति लेखक के समक्ष पेश करते हुए बोला और कहने लगा कि "सर गुनाहों का देवता नायक -कृष्णानन्द वैशलयकरमी राजपूत द्वारा रचित का गद्य में लिया जिसमें अस्तित्व की आसीमता का गठित श्रृंखला के द्वारा दो नायिका स्तुति में किया गया है जिनका नाम "एक वैशया विराह स्मृतियों में गाते हुए तथा एक वैशया प्रेमिका विराह स्मृतियों में गाते हुए नामांकन दाखिल किया गया, और" इस भाग का मुख्य न्यायाधीश के द्वारा उद्देश्य यह समझना है कि अस्तित्व की
असीमता में अस्तित्व का बीज किस भाव तथा किस श्रोत से और किस श्रेणी बोया तथा संजोया जा सकता यह पंक्ति प्रशनवाचक द्वारा लेख के अंकित की गाई जाती है, तो आइए जानते हैं और समझने की कोशिश ज़रूर करिया की अस्तित्व का सार किन तत्वों में बांटा गया है।।
इसे जानने से पहले मैं आपका कुछ विचारश्रोत का ज्ञान बताऊंगा जो कि आपके मनुत्तवयो पर भी निर्भर करता इस आपके साथ आज विचारश्रोत साझा कर रहा हूं,पहला है आचार जो कि निर्भर है वाणी दूसरा है विचार जो की निर्भर करता मस्तिष्क तथा हृदय पर निर्भर करता है जिसका आपका प्रसारण होता और उसी स्वपन साकार होता मगर यह गाथा इस कारण ही पूरी ना होकर तथा समर्पण त्याग बलिदान मूल्य ना झुकाकर हमेशा के लिए असंभव प्रेम गाथा अनन्त में तकदील होकर व्यक्ति को काभी कालचकृ के कर्मों से मुक्त नहीं होने देती जिसमें मनु योनि सबसे बड़ी दुर्बलता हमेशा उसके कर्म के पद पर आकर उसे हमेशा प्रेम से मोह और मया की ओर अग्रसर बढ़ाकर उसके कर्मों को हमेशा अपूर्ण कर उसे समय लेकर जाती ताकि वह काभी इस इच्छा के चक्रव्यूह से निकलकर स्वर्ग लोक से सीधी यात्रा
बैठकुन्धाम मोक्ष प्राप्त और यह गाथा एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त से एक असम्भव प्रेम गाथा अन्त एक असम्भव बैकुंठधाम मोक्ष में तकदील हो मनु को कालचकृ के प्रभाह से मुक्त कर उसे और इस गाथा को बैठकुन्धाम के दर्शन कराने में समर्थ हो।। मगर इसके लिए एक बार फिर भी प्रयास करेंगे इस गाथा के पात्रों की रचनाओ द्वारा प्रयास जारी रहेगा।।
#जारीहै🏴
#अन्नतसेअन्तकीओर💔♥️
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