...

2 views

(कहानी २) जब पहली दफ़ा उन्होंने मेरा हालचाल पूछा...!
यह कहानी तब की है जब मैं कोरोना काल के २ वर्षों के समाप्त होने के बाद बैंगलोर आया था। इस कम्पनी में घर से ही काम (Work from Home) करते वक्त २ वर्ष गुज़र चुके थे और अब मैं नए दफ़्तर के शिलान्यास (शुभारंभ) के ठीक एक दिन पहले (५ मई २०२२) को बैंगलोर पहुँचा। बहुत बारिश हो रही थी। एयरपोर्ट में उतरने के ठीक पश्चात मैं एक कार (Cab) बुक करके अपने निवास स्थान पहुँच गया।
....
यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
(जहाँ नारियों की पूजा होती है, उनकी इज्ज़त होती है वहाँ देवता निवास करते हैं)!
....
पेशे से मैं एक साफ्टवेयर इंजीनियर हूँ और पिछले छः सालों से बैंगलोर में कार्यरत हूँ। मुझे लड़कियों का सम्मान करना पसंद है (इसलिए मैं महिलाओं को मित्र नहीं कहता क्योंकि आजकल इसका अर्थ साथ में घूमना, समय बिताना जैसे क्रियाकलापों से है जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है)!

अगले दिन सुबह मैं पजामा कुर्ता पहनकर दफ़्तर पहुँचा (सभी पुरूष कर्मचारियों को यही पहनकर आने को कहा गया था, महिला कर्मचारियों के लिए सलवार सूट कहा गया था)!

कम्पनी में बहुत सारे नये चेहरे थे, उनमें से कुछ लोगों से Online बात तो हुई थी कार्य के वक्त, मगर प्रत्यक्ष मिलन अभी हुआ नहीं था। कम्पनी के सबसे पुराने कर्मचारियों में मेरा भी तीसरा या चौंथा स्थान आता था तो एक तरह से उनमें से बहुत लोग मेरे बाद कम्पनी में आये थे (कोरोना काल के दौरान)!

इन सभी लोगों में ४ ऐसे लोग थे जिनसे मैं विशेष रूप से मिलना चाहता था। इनमें से २ महिला कर्मचारी एवं २ पुरूष कर्मचारी थे। पहले जो थे वो मेरे से १४ साल ज्यादा अनुभवी थे (ये Team Lead थे)। दूसरे जो थे वह मेरे से ६ वर्ष कम अनुभवी थे (वह मेरे Junior के रूप में कम्पनी में आये थे एवं उनके कार्य के देखरेख जिम्मेदारी मेरी ही थी)। तीसरी जो थीं वह भी मेरे से ६ साल कम अनुभवी थीं और मेरे छत्तीसगढ़ राज्य से ही थीं (इन २ Juniors को साक्षात्कार के पहले चरण में मैंने ही किया था, इनके कार्य के देखरेख की जिम्मेदारी भी मेरी ही थी)। प्रथम तीन को मैंने किसी न किसी तरह देख लिया था, साक्षात्कार के वक्त Google Meet पर या उनके Profile Pic पर। चौंथी जो थी उनसे मेरा कोई खास नाता तो नहीं था मगर Online कार्य में वार्तालाप के दौरान उनके कुछ प्रश्नों से मैं प्रभावित हुआ था एवं चूंकि मैंने उन्हें देखा नहीं था इसलिए उनसे भी मिलना चाहता था।

दफ़्तर पहुँचा तो मेरी प्रथम तीनों से किसी न किसी तरह से साक्षात्कार हो गया परंतु चौंथी जो थीं वह अब भी दफ़्तर नहीं पहुँची थीं। काफी देर होने के पश्चात वह अपनी सहेली के साथ आईं। क्योंकि मैं दफ़्तर में सभी से मिल चुका था और वह अंतिम थीं (यह वही थीं जिन्हें मैंने "कहानी १" में छोटी माँ का दर्जा दिया था, अगर न पढ़े हों तो उसे अवश्य पढ़ें क्योंकि वह घटना हाल की ही है अर्थात बैंगलोर जाने के करीब दस ग्यारह महीने के बाद की) इसलिये मैं उनकी ओर हाथ मिलाने के लिए एवं अपना परिचय बताने आगे बढ़ा जिस तरफ बाकी लोगों से मिला था।

उनसे मिलने के पश्चात वह अपनी जगह पर चली गईं और थोड़ी देर बाद पूजा आरंभ हुआ। आज भगवान तिरूपति बालाजी एवं अन्य देवी देवताओं की पूजा हुई। काफी अच्छा लग रहा था आज का दिन क्योंकि पूरा दफ़्तर धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा के चलते देवालय सा प्रतीत हो रहा था।

दफ़्तर में सभी खाना पीना करने लगे थे और मैं अपनी मेज़ पर शांत बैठा था इसी दौरान वह मेरे पास आईं और पूछा "ऋषिकेश आप खाना नहीं खा रहे हैं"। मैंने भी उत्तर देते हुए कहा "हाँ खाऊँगा" और फिर से काम में लग गया। मुझे उनसे ज्यादा बातचीत करने में लज्जा अवश्य आ रही थी परंतु दिल से मैं उनको, उनके पूछने के लिए धन्यवाद दे रहा था।

दफ़्तर वाली इमारत के सबसे ऊपरी मंजिल में दोपहर के भोजन का इंतज़ाम था। हम सभी वहाँ गए। लोगों की तादाद अधिक होने की वजह से भोजन पारियों में वितरित किया जा रहा था। जैसे ही हमारी पारी आई, मैं भोजन वाले Table के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया।

मैंने देखा, कुछ लोग सामने खड़े थे एवं उनमें वह भी नज़र आ रही थीं पर वह काफी खुश थीं। उतने लोगों को देखकर उनमें से केवल एक को अपना कुर्सी देने की सोचना मुझे उचित न लगा इसलिए मैं शांत था। कुछ देर के पश्चात उनकी भी पारी आई एवं हम सब दोपहर के भोजन के पश्चात नीचे दफ़्तर में आ गए।

नीचे आते ही कुछ कर्मचारियों ने तस्वीरें खिंचवाना प्रारंभ कर दिया। मैं अपने मेज़ पर बैठकर शांत इधर उधर देख रहा था। इस दौरान मेरी नज़र दाईं ओर गई। मैंने देखा वह अपनी सहेलियों के साथ खड़ी थीं एवं बातचीत कर रही थीं और मुझे उस ओर बुलाने का इशारा कर रही थीं। पर मैं उनके बुलाने का उद्देश्य समझ गया एवं उन्हें मना करते हुए कहा कि "मैं थोड़ा व्यस्त हूँ, आप लोग खिंचवाईये"! फिर वह अपनी सहेलियों में मशरूफ़ हो गईं।

उनके बुलाने पर मुझे खुशी इसलिये हुई क्योंकि इतनी सारी लड़कियों में वह केवल अकेली थीं जो मेरा हालचाल, खाना इत्यादि पूछ रही थीं एवं उन्होंने मुझे इस योग्य समझा (मुझे उस दिन और किसी ने नहीं पूछा)!

थोड़ी देर बाद वह मेरे पीछे से जाते हुए नज़र आईं (शायद वह Washroom ya Cafeteria से होकर आ रही थीं)। उन्होंने मेरे पास पहुँचकर कहा "ऋषिकेश आप इतने शांत क्यों बैठे हैं, सबसे बात कीजिए, आप ऐसे ही शांत रहते हैं क्या?"! इस पर मैंने भी उनका उत्तर देते हुए कहा कि "नहीं ऐसा कुछ नहीं है, मैं दफ़्तर में बहुत सारे लोगों को नया पा रहा हूँ तो घूलने मिलने में काफी समय लगेगा"! फिर इसके बाद वह "अच्छा अच्छा"कहते हुए वहाँ से चली गईं।

इस दिन के बाद से उनके लिए मेरे दिल में सम्मान की भावना बनी रही और अब तक बनी हुई है। इसके पश्चात और भी कई अच्छी घटनाएं घटीं और अंततः उन्हें मैंने "छोटी माँ" का दर्जा दे दिया (कहानी १ अवश्य पढ़े इसे और ठीक से समझने के लिए)!

शाम होते ही हम सभी अपने अपने घर को जाने लगे। और मैं भी एक आटो बुक करके चला गया (बाहर में हल्की बारिश का आरंभ हो चुका था)! जाते वक्त रास्ते में दफ़्तर की घटनाएँ घूम रही थीं और दिल में उनके लिए जो सम्मान और आदर का भाव जो है वह दोगुना हुए जा रहा था और इस तरह मैं अपने गंतव्य पहुँच गया।

बैंगलोर के दफ़्तर की यह घटना मेरे कार्यकाल के सबसे यादगार एवं बेहतरीन यादों में शुमार हो गया। उस वक्त इन घटनाओं को बारम्बार याद करके मैं जो बीमार हो गया।

-✍️ऋषि (भारतर्षि)🔱
(कुछ सत्य एवं कुछ काल्पनिक घटनाओं पर आधारित)


#mountains
#mitabhas
#hygull
#inspiration
#motivation
#agartalaqueen
#bangalorestory
#beautifulmemories
#pastmemories
#truestory

© All Rights Reserved