...

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अधूरी वफ़ा
हमने जो इज्ज़त जो प्यार तुम्हें बख्शा
तुम उसके काबिल ही न थे
तुम चले गए तो अहसास हुआ कि
हम अपनी तमाम मुहब्बत और खुलुस
को किसी कचरे के ढेर पर डाल बैठे
आज दिल सोचता है तो अफसोस होता है
कि मेरे कदम तेरी जानिब मुंडे ही कयोंकर
और उस पर मैंने तेरी दोस्ती का हाथ
थामने की ग़लती ही की क्योंकर
तेरी दोस्ती से मुझे मिला क्या
कड़वी कसैली यादों के सिवा
पहले पहल आप ही अपना बना बैठे हमें
फिर न जाने किसलिए दिल से भुला बैठे हमें
आपने ये भी न सोचा दोस्ती क्या चीज है
तुम्हारे पास क्या था मुझे देने के लिए
रुसवाईयों और दुशवारियों के सिवा
बात बात पर कहते थे
very nice of you very nice of you
ये तो टीस खाने के बाद पता चला
ये तो सब झूठ था टाइम पास था
दोस्ती झूठी थीऔर वफ़ा अधूरी

© सरिता अग्रवाल