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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 18 )
गीतिका :- पार्थ तूने भी मुझे चुहिया कहा,,,,ठीक है। मैं चुहिया हूँ। अब मुझसे कभी बात मत करना मैं जा रही हूँ।

पार्थ :- पर गीतिका,,,,, अब आगे,,,,,,

पार्थ कुछ बोल पाता की गीतिका वहाँ से जाने लगती है। उसको ऐसे जाता देख निवान पीछे से उसको आवाज लगाते हुए बोलता है।

निवान :- रोकते हुए,,, गीतिका,,,,,,सॉरी,,,,मैं तो बस मज़ाक कर रहा था।

उसकी यह बात सुनकर गीतिका पीछे मुड़कर निवान से बोलती हैं।

गीतिका :- बस तुम दोनो यही किया करो। पहले गलती करो " फिर माफी मांगो।

पार्थ :- क्या,,, तुम दोनो' मैंने तो कुछ भी नही कहा है। तू मुझे क्यों बोल रही है।

निवान :- बस कर गीतिका  तू कितना लड़ती है। अच्छा अब उस बात को छोड़ और यह बता की तू स्कूल कौन - से जाती है  ?

गीतिका :- मुस्कुराते हुए,,,,,, मैं तो स्कूल नही जाती' फिर मुझे स्कूल का नाम कैसे पता होगा।

निवान :- हैरान होकर,,,,, क्या कहा तूने,, तू स्कूल ही नही जाती।

गीतिका :- नीचे बैठते हुए,,,,,, नही।

पार्थ :- गीतिका के साथ बैठकर,,,,,,, पर क्यों गीतिका,,,तू कितनी बड़ी हो गई है। फिर तू स्कूल कब जाएगी। तुझे तो पढ़ना पसंद है।

गीतिका :- उदास होकर,,,,,, हाँ मुझे पढ़ना पसंद है, लेकिन हमारे घर मे लड़कियों को पढ़ने की इजाजत नही है।

निवान भी गीतिका और पार्थ के साथ घांस पर बैठते हुए गीतिका से पूछता है।

निवान :- गीतिका,,,फिर तू उन कॉपी, किताब से पढ़ेगी कैसे ?

गीतिका :- मुस्कुराते हुए,,,,, मानवी दीदी से पढूंगी और किससे पढूंगी।

पार्थ :- चोंकते हुए,,,,, पर कैसे " तुम्हारे यहाँ तो पढ़ने की इजाजत ही नही है। फिर उनको कैसे पढ़ना आता हैं ?

गीतिका :- क्योंकि वो स्कूल गई है,,,,,, पार्थ।

निवान :- क्या,,,, अभी तो तूने कहा था की तुम्हारे यहाँ लड़कियों को पढ़ने की इजाजत नही है

गीतिका :- हाँ,,,,, हमारे घर मे लड़कियों को सच मे पढ़ने की इजाजत नही है। लेकिन मेरी बड़ी माँ बहुत अच्छी है उन्होंने मानवी दीदी को पढ़ाया है।

पार्थ :- और वह कैसे ?

गीतिका :- पार्थ को देखते हुए,,,,,छिप-छिप कर और यह बात सिर्फ हम तीनों को पता थी और आज से तुम्हे भी पता है

निवान :- वो तो ठीक है,,,,,,,,लेकिन किसी और को यह बात पता चल गई तो क्या होगा,,,गीतिका।

गीतिका :- निवान को आँखे दिखाते हुए,,,,,,, गृहयुद्ध् होगा।

निवान :- हाँ,,,,, तो ठीक है ना,,यह कंचे जैसी आँखे क्या बाहर निकाल रही है। छोटे से बच्चे को डरा रही है।

पार्थ :- गीतिका चल तेरी सारी बात मान ली। लेकिन मानवी दीदी स्कूल गई कैसे ? उनको किसी ने देखा नही।

गीतिका :- पता नही,,,,, लेकिन इतना जरूर पता है की वह स्कूल के लिए अपनी दोस्त के घर से तैयार होकर जाती थी ।

निवान :- तो ऐसे तो' तू भी पढ़ सकती है और तुझे तो पढ़ना अच्छा भी लगता है।

गीतिका :- तुम कितने बद्धू हो,,,,, अगर मेरी माँ भी बड़ी माँ की तरह होती, तो तुम्हे लगता है " मैं बिना पढ़े रहती।

पार्थ :- तो तू अपनी बड़ी माँ से क्यों नही बोलती' अपनी माँ से
बात करने के लिए।

गीतिका :- उदास होकर,,,,, वह कभी नही मानेंगी पार्थ,,,क्योंकि उनके लिए तो, मेरी शादी करने लायक उम्र हो गई है।

गीतिका की यह बात सुनकर पार्थ और निवान चौक जाते है और एक - दूसरे को देखने लगते है तभी निवान गीतिका से बोलता है।

निवान :- क्या कहा तूने,,,,,, शादी,,,वो भी तेरी, गीतिका एक बार खड़ी हो।

गीतिका :- पर क्यों,,,,

निवान :- गीतिका को उठाते हुए,,,,,,,, अरे,, एक बार उठ तो सही मेरी माँ।

गीतिका :- खड़ी होते हुए,,,,, मैं तेरी कोई माँ नही हूँ समझा।

निवान :- अरे,,,,, ठीक है। अब चुपचाप खड़ी रह,,,,मुझे कुछ देखने दे।

पार्थ :- तू क्या कर रहा है। क्या देखने की बात कर रहा है ?

निवान :- पार्थ के पास जाकर,,,,,, नही भाई तू समझा नही " मैं सोच रहा हूँ की इसकी अक्ल तो घुटनों मे है और इसकी माँ इसकी शादी करने की बात कर रही है।

गीतिका :- क्या कहा तूने,,,,,,,,

To Be Continue Part - 19

© Himanshu Singh