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बोलता पत्थर
"बोलता पत्थर"
एक गाँव में मूर्ति बनाने का काम एक कारीगर को दिया जाता है। उस कारिगर के पास दो बड़े पत्थर रहतें है।
कारिगर मूर्ति बनाने का काम प्रारम्भ करता है। वह पहले बड़े पत्थर पर जैसे ही हथौड़ी चलाता है वह बोल उठता है "कृपया करके मुझे छोड़ दो मैं इतनी पीड़ा सहन नहीं कर सकता"।
कारीगर पहले पत्थर की व्यथा सुनते हुए उसे छोड़ देता है और दूसरे पत्थर पर हथौड़े से प्रहार करता है "वह दूसरा पत्थर मौन रेहकर सभी पीड़ा सेहता है"
यही प्रक्रिया एक महीने तक चलती है जब भी पहले पत्थर पर कारीगर हथौड़ा चलाता वह चीख उठता और दूसरा पत्थर मौन रेहकर सब कुछ सेहता रेहता है।
फिर एक दिन वह दुसरा पत्थर एक अद्भुत खूबसूरत कृष्ण की मूर्ति बनकर तैयार हो जाती है और उसे गाँव के मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। उस मूर्ति की गाँव के लोग पूजा-अर्चना करने लगतें हैं।
पहले पत्थर को मंदिर के बाहर रख दिया जाता है सभी गाँव के लोग इस पत्थर पर पैर रखकर मंदिर में प्रवेश करतें हैं।।
बात बस इतनी सी हैं कि जीवन भर कष्ट सहने से बेहतर है थोड़ी-सी दर्द सेहकर अपने और अपनों के जीवन को सुखी बना लो।।✍️❤️
© Sanam kumari