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आजादी मागता पुरुष
आजादी शब्द अपने आप में एक पहेली है
क्योंकि हर एक व्यक्ति अपने आप को स्वतंत्र रखना चाहता है
लेकिन एक बात यहां पर भी लागू होती है कि किसी को बंधन में रखकर स्वयं स्वतंत्र होने की कामना कोई कैसे कर सकता है
लेकिन ज्यादातर वाक्या हर शादीशुदा व्यक्ति की जिंदगी में रहता है वो स्वयं को हमेशा शादी के बाद हमेशा बधा हुआ महसूस करता है जब कभी कोई वाक्या होता है तो कुछ को छोड़कर ज्यादातर पुरुष यही कहते है कि शादी के पहले में ठीक था शादी के बाद तो जिंदगी बर्बाद हो गई है पहले सुखी से जी रहा था अब जिंदगी कैद बनके रह गई है अगर में शादी न करता तो ज्यादा सही था
में हर उस पुरुष से पूछना चाहती हू कि अगर आप स्वतंत्र रहना चाहते हो तो किसी आजाद खुश दिल लड़की का हाथ थाम कर शादी जैसे बंधन में बांधकर अपने घर लाकर रख देते हो
फिर उससे सभी यही आशा करते है की हम जैसा कहे ये उसी तरह चले मेरे कहने पर बैठे मेरे कहने पर चले सारे लोग सारा समाज एक स्त्री को हमेशा अपने इसारे पर चलाना चाहते है
लेकिन एक स्त्री पूरी दुनियाँ को छोड़कर केवल अपने पति से ये चाहती है की उसका पति उसे समझे और उस के सिवा किसी और स्त्री की तरफ न देखे तो इसमें क्या बुराई है
जिसको वह अपनी दुनिया मानती है उससे वह इतनी सी भी आस नहीं कर सकती
इन्ही सब बजह से पुरुष शादी जैसे पावन रिश्तें को बंधन समझने लगते है
जहाँ तक देखा की पुरुष बाहरी आकर्षण का होता है
जबकि एक स्त्री का प्रेम उसकी आंतरिक आत्मा रोम रोम से हो जाता है
कुछ समय के बाद पुरुष के प्यार में अलगाव पैदा हो जाता है
लेकिन वही देखा जाए तो दूसरी तरफ स्त्री का प्यार धीरे-धीरे गहरा होता जाता है
पुरुष हमेशा एक को छोड़कर दूसरे के पीछे भागता रहता है और सुकून पाना चाहता है लेकिन सही मायने में जो सुकून उसके पास होता है उसको छोड़कर वह चारों तरफ देखता है
जो आनंद पास है उसे आनंद को न पाकर बाहरी आनंद की खोज में लग जाता है
उसकी फिक्र करना उसका हाल-चाल पूछना एक वक्त के बाद उसको बंदिश लगने लगती है
और वह इन सबसे आजाद होना चाहता है
लोग किस सोच के वसी भूत होते जा रहे हैं
धीरे-धीरे वह सारी जिम्मेदारियां से बचना चाहता है
वह सारी चीज उसके कंधों पर एक बोझ बन जाती हैं
और वह हमेशा आजादी की मांग करता रहता है ।।
© Mamta