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दौड़ती बस

दौड़ती बस

उजाला होने में बस कुछ ही समय बाकी था। और वो बस चली जा रही थी । यह वही बस थी जिसमें कुछ यात्री थे एक ड्राइवर था और एक कंडक्टर ।
न जाने कहाँ से आ रही थी और न जाने कहाँ जा रही थी।

अजीब सी चीख पुकार थी, और बस रफ्तार की तेज थी । सिर्फ बस चले ही जा रही थी। इतने में जैसे ही उजाला हुआ वो बस गायब हो गयी किसी को नहीं दिखी कहाँ गयी ।

कुछ लोगों ने बस को गायब होते देखा और हैरान खड़े ही थे कि इतने में कुछ गाँव वाले भागते भागते आते हैं और श्याम दादा से बस के बारें में पूछते हैं।

श्याम दादा ने किस्सा बताया कि बस तो गायब हो गयी न जाने कहाँ । लेकिन तुम लोग कौन हो ? श्याम दादा ने पूछा।

रोहित जो गाँव वालों में से एक था ,कहता है, आधी रात को कुछ अनजान लोगों ने हमारे गाँव मे हमला कर दिया था। हमारे गाँव के लोग सीधे साधे हैं। और वो लोग संख्या में भी अच्छे खासे थे और हथियारों के साथ थे।

कुछ लोग सामान लूट रहे थे और कुछ औरतों और बच्चों को निशाना बना रहे थे। हम सभी लड़ तो रहे थे लेकिन लेकिन मुकाबला नहीं कर पा रहे थे।
कि तभी गाँव कि एक चाची ने पीपल के पेड़ के आगे हाथ जोड़े।

देखते ही देखते वहाँ यही बस और ये लोग न जाने कहाँ से आ गए। और बहादुरी के साथ उन हैवानों से मुकाबला किया और हम सबको बचा लिया।
हम उसी बस का पीछा करते हुए यहाँ तक पहुंचे लेकिन वो भी गायब हो गयी।

इतने में गाँव के कुछ और लोग वहाँ पहुचते हैं और साथ मे वो चाची भी।
और सब जानने के बाद वो चाची कहती है कि मेरे बचपन मे किसी ने कहा था कि आत्मा बुरी नही होती और आज जान भी लिया।

सतेंदर तिवारी

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