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पद्मिनी: जौहर
क्रमशः से आगे
सिहंलद्विप रहे बहुत दिन रत्नसेन
फिर पद्मिनी को गढ़ चितौड़ ले आए थे
रत्नसेन का हुआ भव्य स्वागत
वाद्य मधुर बजे गंधर्वों का गान हुआ
और बजी बधाई थी
पद्मिनी के रूप में चितौड़ की श्री चलकर स्वयं
आईं थीं
पद्मिनी की सुंदरता की ख्याति
लोलुप लम्पट खिलजी तक...