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ये भी एक विडंबना....
हम सबने अपनी मां के रूप में एक ऐसी स्त्री को देखा है, जिसके पास शायद या तो कोई जादुई छड़ी या कोई जादुई चिराग या पता नहीं क्या होता है l हर परेशानी, हर सवाल का हल उनके पास होता है l सबके मन की बात पढ़ लेने का अजब सा हुनर होता है, लाख छिपाओ पर उनकी नज़र से छुपना नामुमकिन होता है l बीमारी या परेशानी में उनका स्पर्श जैसे हर पीड़ा को हर लेता है l कभी हम में से किसी ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि मां को क्या होता होगा, या लगता होगा l नारी को माँ का दर्जा देकर उसका सम्मान किया जाता है या उसे अनदेखी हज़ारों बेड़ियों में जकड़ा जाता है l
बुरा लगा ना, आप सभी का जवाब होगा, " नहीं " l अब मां के स्थान पर पत्नी को ले आये, सोचने का नज़रिया ही बदल जायेगा l स्त्री तो वो भी है, वो भी आपकी और आपके परिवार की देखभाल और सेवा सुश्रुषा में कोई कमी नहीं छोड़ती l लेकिन उसे और उसके हर कार्य को अक्सर उपेक्षित करना जैसे एक आम बात होती है l
जैसे ही एक घर में एक बहू का प्रवेश होता है, सबकी अपेक्षाएं उस से यही होती है कि वो संसार की सबसे आदर्श नारी की तरह हर रिश्ते, घर परिवार और सारी जिम्मेदारियों को बेहद सुघड़ता से निभाए l संस्कारों से निर्मित, करुणा की देवी और कभी ना थकने वाली मशीन का प्रतिरूप हो, किंतु कभी स्वयं में झांक कर कोई नहीं देखता कि आप उसे क्या दे रहे है l
उसकी अनुपस्तिथि केवल समय पर काम ना होने पर ही खलती है l जिस घर में वो अपना अस्तित्व भूल कर सबके लिए अपने सुखों का त्याग करती है, उसी परिवार में उसके साथ अपने रिश्ते का मान रखना भी कोई जरूरी नहीं समझता l कितना भी समय बीत जाए लेकिन उसे परिवार का हिस्सा तक नहीं माना जाता l वो ससुराल को अपना घर माने पर खुद पराई ही बनी रहे l कैसी विडंबना है कि जिस पुरुष का हाथ थाम कर वो उस घर में प्रवेश करती है, वो भी उसे उपेक्षित और प्रताड़ित होते देख कर मूक दर्शक बना रहता है l उसकी पीड़ा की अवहेलना कहीं ना कहीं ये दर्शाती है कि संवेदन शीलता का अभाव शायद उनके जमीर तक को भी मार चुका है l
हम हमेशा की तरह फिर यही कहेंगे कि अपवाद बहुत है l कितने ही घरों में बहू को बेटी से भी ज्यादा प्यार और सम्मान दिया जाता है, पति रूप मे उन्हे ना केवल जीवन साथी, अपितु पिता की तरह एक संरक्षक और एक ऐसा मित्र मिलता है जो उनकी खामोशी भी समझ लेता है l उसका स्थान परिवार में एक अहम स्थान रखता है l एक नई पीढी के रूप में उस परिवार मे उसके फैसलों और पसंद को भी प्राथमिकता दी जाती है l
परंतु विडंबना ये है कि ऐसी भाग्यशाली नारियाँ बहुत कम है अन्यथा, आप ध्यान से देखिये अपने आस पास के चेहरों को, आँखो मे थमे आँसुं, अपने अस्तित्व को ढूंढती उनकी पहचान और बेबसी में रुके कांपते होंठो पर कुछ शब्द , आपको हर चेहरे में दिख जायेंगे l
काश ! वैसा होता, जैसा होना चाहिए, वैसा ना होता, जैसा है...


© * नैna *