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चप्पल
बरसात शुरू हो गई। बुढ़िया जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रही थी, भीग जाने पे बीमार पड़ने पर अस्पताल में सौ रुपए कौन खर्च करे।
वैसे भी आज कल डाक्टर लोग बेवजह ही पैसे लूटने के लिए भर भर के दवाईयां लिख देते है। यह सोच ही रही थी की बुढ़िया की चप्पल टूट गई, अभी 6 महीने ही हुए थे चप्पल लिए, अब सिलवाने के कम से कम 30 लेगा मोची। उधर बुढ़ऊ के पास भी चप्पल नहीं है। परेशान बुढ़िया ने चप्पल हाथ में उठाई और भीगने से बचने के लिए एक मकान के ओट में खड़ी हो गई। मकान के चबूतरे पर एक छोटी बच्ची अपनी गुड़िया का ब्याह रचा रही थी। गुड़िया को उसने एक हार पहना रखा था। बुढ़िया हतप्रभ देखती रह गई। हार तो सोने का लगता है। कैसे लोग है, बच्ची को इतना महंगा हार दिया हुआ है। लोभवश बुढ़िया ने बच्ची को बहला फुसला कर हार ले लिया और कोई देख न ले इस डर से बारिश में ही भीगते हुए हार लेकर भाग उठी। जब बच्ची की महतारी को पता चलता है कि उसके हार के साथ क्या आपबीती हुई है तो उसने अपनी सुपुत्री पर कई चप्पल बरसाए। पूरे लाख रुपए का हार था जो उसने किसी अनजान को दान कर दिया। अब वह बुढ़िया को कहां खोजे?
इधर बुढ़िया घर आई तो दिया बाती का समय हो चला था, बुढ़िया ने लालटेन जलाया तो उसकी रोशनी में नया-नया हार चमक उठा। बुढ़िया ने तुरंत उसे तोशक के नीचे छिपा दिया और बाट देख रहे बुढ़ऊ के लिए रोटी बनाने में लग गई। भोर हुई तो बुढ़ऊ को तेज़ बुखार चढ़ आया, पूरा शरीर तप रहा था। बुखार बढ़ा तो बुढ़िया ने एक छोटे चिकित्सक के पास जाने का निर्णय लिया। इलाज के खर्च के लिए बक्सा टटोला तो बहुत कम पैसे मिले। बुढ़ऊ का शरीर दर्द से फटा जा रहा था।
इधर छोटी बच्ची के घर में उस हार की वजह से कलह मची थी। उसके माता पिता में क्लेश हो उठा था। वह दंपति एक दूसरे को लापरवाह साबित करने पर तुला हुआ था की बच्ची के हाथ में हार कैसे आ गया था और बच्ची एक कोने में सहमी खड़ी थी। लंबे विवाद और बहस के बाद रिश्तेदारों ने रास्ता निकाला और तलाकनामे पर दस्तखत हो गए। बवाल खतम होने के बाद पति महोदय पत्नी को गुस्से में बड़बड़ाता छोड़ काम पर निकल गए।
बुढ़िया ने कड़े हृदय से हार को बेचकर बुढ़ऊ का इलाज कराने का सोचा, उसके पास और कोई मार्ग नहीं था। हार लेकर सोनार के पास गई और उसे बेचने के लिए आगे कर दिया। लाला जी ने फटेहाल बुढ़िया को हार बेचने आया हुआ देखा तो भड़क उठे "क्यूं री बुढ़िया? मुझे मूर्ख बनाने चली थी नकली हार बेचकर?" बुढ़िया ने सर पीट लिया, व्यर्थ ही बच्ची से नकली हार लेकर आई। घर आकर बुढ़िया ने पति को ढांढस बंधाया "तू चिंता मत कर, मै कुछ प्रबंध करती हूं।" बुढ़िया ने बासी रोटी में थोड़ी चीनी डालकर चोंगी बनाकर दे दिया जिसे खाने का बिना दांत वाला बुढ़ऊ अथक प्रयास करने लगा। तभी एक फेरी लगाने वाला व्यापारी चप्पलें लेकर आया "चप्पल ले लो।"
बुढ़िया ने असहाय नजरों से बुड्ढे के नंगे पैरों को देखा और कांप गई "बारिश में नंगे पांव घूमता है, कमज़ोर है, इसीलिए बीमार पड़ा होगा।" सोचा तनिक जाकर देख लूं कैसी चप्पलें दे रहा है, लेने से तो रही। व्यापारी चप्पलें दिखाने लगा तो सहसा उसे धूप में अभी तक बुढ़िया के साड़ी की छोर में बंधा हार चमकता दिखा। हार ने उसे किसी सोच में डाल दिया। बुढ़िया ने व्यापारी की नजर समझी और डरते- डरते बोली, "हार के बदले दो चप्पलें देगा?" व्यापारी मान गया। उसने बुढ़िया को दो चप्पलें और कुछ पैसे दिए और हार लेकर चला गया। बुढ़िया अपनी चालाकी पर मन ही मन खुश होते हुए झोपड़ी में चली गई और बुढ़ऊ से बोली, "पैसों का इंतजाम हो गया है, चल डाक्टर के पास।"
शाम हुई, बच्ची की मां घर छोड़कर जाने की तैयारी कर रही थी। उसने कपड़े रखने के लिए अलमारी खोली तो उसकी आंखें चमक गई। बच्ची ने मां की आंखों में चमक देखी तो उलझन में पड़ गई। देखा तो वह चमक दरअसल हार की और उसके अलमारी में मिलने की खुशी की थी।बच्ची खुशी से नाच उठी, मां ने भी बच्ची का माथा चूम लिया। फेरी लगा कर कुछ देर पहले घर आया व्यापारी भी पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

© metaphor muse twinkle