...

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तुम्हें कभी इश्क़ हुआ है?
"तुम्हें कभी इश्क़ हुआ है?" वो चाय का बड़ा कप अपने दोनों हंथेलियों में दबा कर पहाड़ों की तरफ देखते हुए पूंछती है।
"नहीं.. कभी नहीं।" मैं उसकी आँखों में आँखें डाल के कहता हूँ।
पूंछती है, "तो फिर क्यूँ कहते हो मुझसे प्यार करते हो?"
कहता हूँ, "प्यार करता नहीं हूँ, प्यार है.. करने और होने में फर्क है, करना स्वैच्छिक है और होना आंतरिक।"
कहती है, "नशे में हो.."
मैं कहता हूँ, "नशे में कौन नहीं है.. ये पेड़ हवाओं के नशे में हैं, हवाएं धुओं के नशे में हैं, धुआँ हमारे नशे में है, और हम तुम्हारे नशे में हैं।"
वो एकटक देखती है मुझे, और अचानक से उठ के चली जाती है। चाय का एक कप और लेने शायद..
यूँ के, मुझे प्यार है जब वो ठिठुर रही होती है पहाड़ों की सर्द हवाओं में हंसते हुए, मुझे प्यार है जब उसे चाय बनाने के बाद याद आता है मुझे चीनी ज्यादा पसन्द है, मुझे प्यार है जब वो मोमोज़ ऑर्डर करने से पहले आधे घंटे ये सोंचती है 'क्या खाऊं', मुझे प्यार हैे जब उसके साथ पल भर को रहने के बाद दिन भर अपने कपड़ों में उसकी खुशबु महसूस करता हूँ और मुझे प्यार है कि रात में सोने के पहले सिर्फ उससे बात करना चाहता हूँ।
ये सब इसलिए नहीं है कि मैं अकेला हूँ या मुझे जरूरत है उसकी। मैं उसके साथ हूँ.. क्यूँ कि जब आपको पता चलता है कि आप किसी के साथ अपनी बांकी कि जिंदगी बिताना चाहते हैं तब आप अपनी बाकी की जिन्दगी जल्द से जल्द शुरू करना चाहते