...

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सपनों का महल और मिट्टी का ढेर
*मैं और मेरे ख्वाब*

इतने दुःख होने के बाद भी
कितनी खुश थी मैं उस रात
सिर्फ तुम्हारी एक हां मेरी इस खुशी का राज़ थी
ऐसा लगने लगा था कि सब ठीक हो जाएंगे
हम फिर से पहले कि तरह रहने लगेंगे
सब बातों, वादों, चीजों पर पहले सा यकिन करने लगी थी
खुली आंखों से मुझे हमारा सपना सच होता सा दिख रहा था
हम हमेशा के लिऐ हम एक हो जाएंगे
एक ही रात में कितना कुछ सोच लिया था कितने सपने सजा लिऐ थे कि ऐसा होगा तो वैसा करेंगे वैसा होगा तो ऐसे करेंगे, इधर जाएंगे उधर जायेंगे तमाम खुशी से बिताने के पल सोच लिऐ थे
जो गलतियां मैंने कि है उन सब को मैं अपनी मोहब्बत से ठिक कर दूंगी पहले से भी ज्यादा तुम्हें प्यार दूंगी
मैंने सिर्फ एक हां सुन कर ही रात भर में अपने सपनों का महल बना लिया था
विश्वास ही नहीं हो रहा था कि तुम लौट आऐ हो मेरे पास मुझे अपनाने के लिए
और विश्वास होता भी कैसे
सपने कभी सच नहीं होते
तुम ग़लत नहीं थे मैं हूं
क्योंकि वो सपना मेरा था
और आंख खुली तो बस मैं थी
और एक पल में ही सब मिट्टी के ढेर सा लगने लगा।

© काल्पनिक लड़की