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अद्भूत प्रेम (अंतिम भाग)
काफी लंबे समय बाद अगला भाग लिखने के लिए मन से सॉरी

रीता को लगने लगा ये धीरज ही है ऐसा एहसास तो धीरज के समय होता था
फिर धीरज की आवाज सुनाई दी मेरी प्राण वल्लभा ये मैं ही हूँ डरो नहीं मैं मरकर भी तुमसे दूर नहीं हुआ कभी तुम्हारा दोस्त, कभी रिश्तेदार कभी अजनबी बनकर करता रहा
अब रीता को तसल्ली हुई वो कहने लगी मुझे इसलिये लगता था ऐसा क्यों लगता कोई मेरा अपना मेरे साथ चल रहा है वो आप थे ये जानकर मन हर्षाने लगा है
धीरज की आत्मा ने रीता को हवा मे उठा लिया

रीता - धीरज आप बिल्कुल नहीं बदले आज भी मुझपर जान छिड़कते है ये बहुत अछा लगता है ये जानकर

धीरज ने रीता को चूम लिया रीता निहाल हो गयी

धीरज ने दरवाज़े की तरफ देखा दरवाज़ा बंद हो गया उसने गाना चलाया ये मौसम हम दोनों को पास ले आया

गाना सुनकर रीता कहने लगी वाह वाह आज तो आपने मेरी पूरी उदासी मिटा दी

धीरज बस मुस्कुराया

बाहर...