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!! सुनो पिछले जनम की प्रेमिका !!
रोज़मर्रा की ज़िंदगी और रहन-सहन में अब कोई बंधे-बंधाएँ नियम नहीं बचे इक खुलापन इक अज़ीब सी अनियमितता बिखरी हूई सी मिलेगी हर जगह सुबहे शामे दोपहरे जैसे दूरतक फैली हूई वही उदास सन्नाटा टूटता सा अकेलापन गुजरते वक़्त के ख़ामोश लम्हें शायद कुछ मुझसे कहना चाहते है। मगर लगता ही नहीं की कभी किसी के निग़ाहों के जादूभरी नज़रों ने इस सन्नाटे के प्रेत को जीत लिया था? सोचता...