...

13 views

!! सुनो पिछले जनम की प्रेमिका !!
रोज़मर्रा की ज़िंदगी और रहन-सहन में अब कोई बंधे-बंधाएँ नियम नहीं बचे इक खुलापन इक अज़ीब सी अनियमितता बिखरी हूई सी मिलेगी हर जगह सुबहे शामे दोपहरे जैसे दूरतक फैली हूई वही उदास सन्नाटा टूटता सा अकेलापन गुजरते वक़्त के ख़ामोश लम्हें शायद कुछ मुझसे कहना चाहते है। मगर लगता ही नहीं की कभी किसी के निग़ाहों के जादूभरी नज़रों ने इस सन्नाटे के प्रेत को जीत लिया था? सोचता हूँ ख़ुशनुमा सुबह का इंतज़ार किसे नहीं होता फिर भी यादें तेरी हमें ये किस मोड़ पर ले आई हैं साथिया ऐसे ही बातों ही बातों में कई बार मै कुछ लम्हों के लिए कही खो सा जाता हूँ। तो फिर तुम्हारी वह अमलताश की फूलों जैसी खिलखिलाती हँसी अब भी मेरे यादों के झरोखें से मुस्कुराती हूई नज़र आती है इक नज़र के सिवा कुछ भी न था मेरे पास क्या ख़्वाब था की पलकों पर पलभर भी ना ठहरा दोपहर की कुनकुनी धूप मे घाटी में घने होते कोहरे को मै देखता हूँ तो सोचता हूँ, ये नीला सा धुंधला कोहरा तुम्हारी यादों की तरह ही पल-पल घना और गहराता जाता है सुना था कभी किसी मुसाफ़िर से पहाड़ों में आत्माये घूमती हैं। सोचता हूँ क्यूँ मै इन पहाड़ों और घाटियों में भटक रहा हूँ। पिछले जनम के किसी भूली बिसरी कहानी ने मुझे यहाँ बुलाया है आज भी पूछता हूँ। इन हवाओं से मेरा और तुम्हारा मिलन इसके पहले भी हुआ था? कभी सच में हम पहले भी मिले है कभी? तुम्हारे और मेरे नाभी क़े तार जुड़े थे इक साथ कभी मगर ये क्या तुम तो इस समय मेरे सामने हो ही नहीं तो फिर ये अधूरी कहानी पिछले जनम की कैसे पूरी होगी सुनो मेरी पिछले जनम की प्रेमिका कल रात चाँद ने नींद से जगाकर मुझ से कहा इक मासूम लड़की तुम्हारा पता मुझसे ले गई तो बोलो साथियाँ क्या वों तुम थी ???
© राजेश पंचबुधे