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बिहार के पूत "सात शहीद"
यह कहानी उन सात योद्धाओं की है। जिन्होंने अपनी जान की परवाह करे बिना भारत को स्वतंत्र करने में सहीद हो गए। मगर अफसोस इस बात की है, हम उन सभी क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्ने तक ही सीमित करते जा रहे हैं।

चलिए हम आपको इतिहास के उन्हीं पन्नों से 11 अगस्त 1942 की वह दुर्लभ दृश्य आपके सामने पेश करते हैं।

बिहार के वो सात सपूत (उमाकांत प्रसाद सिंह, रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगपति कुमार, देवीपद चौधरी, राजेन्द्र सिंह और राम गोविंद सिंह) ये सभी युवा पटना के स्कूल-कॉलेजों के छात्र थे। लेकिन अंग्रेजों की बढ़ती क्रूरता और भारतवासियों पर हो रहे अत्याचार को देख कर ये सभी साथी चिंतित रहते थे। जब बापू ने सम्पूर्ण भारत में अगस्त क्रांति का आह्वान किया था। तब ये सातो साथी भी अगस्त क्रांति आंदोलन पर बढ़चर कर हिस्सा लिया था।

साल 1942, दिन 11 अगस्त, समय 2 बजे, अगस्त क्रांति आंदोलन के दौरान पटना सचिवालय पर झंडा फहराने निकले लोगों में से ये सातों युवा भी शामिल थे। इस अभियान का नेतृत्व कर रहे देवीपद चौधरी, जो मात्र 14 साल के थे। वे जब सचिवालय की ओर अपने छह साथियों के साथ बढ़ रहे थे तो पुलिस ने उन्हें रोकना चाहा पर वे रुकने वाले कहां थे। देवीपद तिरंगा थामे आगे बढ़ रहे थे कि पुलस ने उन्हें गोली मार दी। देवीपद को गिरते देख रामगोविंद सिंह आगे बढ़े और हाथ में तिरंगा ले लिया। रामगोविंद सिंह आगे बढ़े तो पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। फिर तिरंगा रामानंद सिन्हा ने थामा और तिरंगा को गिरने नहीं दिया। जब रामानंद को गिरता देख राजेन्द्र सिंह ने तिरंगा थामा और आगे बढ़ते गए। राजेन्द्र सिंह से तिरंगे को गिरता देख जगपति कुमार ने संभाला। जगपति कुमार को एक गोली हाथ में लगी दूसरी गोली छाती मे धंसी और तीसरी गोली जांघ में लगी फिर भी तिरंगा नहीं झुका। अब आगे सतीश झा आये उन्होंने तिरंगा फहराने की कोशिश में इन्हें भी गोली मार दी गई। सतीश भी शहीद हो गए पर झण्डा नहीं गिरने दिया। आगे बढ़कर उमाकान्त सिंह उठा लिया तिरंगा, वो मात्र 15 वर्ष के थे। पुलिस दल ने उन्हें भी गोली का निशाना बनाया, पर उन्होंने गोली लगने पर भी आखिरकार सचिवालय के गुम्बद पर तिरंगा फहरा ही दिया। इसके बाद वे शहीद हो गए।

एसे महान युवा क्रांतिकारियों पूरे भारतवर्ष की तरफ से कोटी कोटी नमन।
© महज़