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एक अनजान रिश्ता
जिंदगी के सफ़र में कुछ रिश्तों की कहानी बड़ी रोचक होती हैं , जिंदगी के हर मोड़ हर पड़ाव पर
एक नया रिश्ता मिलता हैं ।।
‌आओं चलतें जिंदगी के शुरूआत में जहां से
बचपन गुलज़ार हो रहीं होती हैं इस दरमियान जिंदगी इस पड़ाव में जो रिश्ता हमसे जुड़ता है , उन रिश्तों की मिशाल ताउम्र दीं जाती हैं इसलिए नहीं की यें बचपन में इनसे ज्यादा लगाव होता है बल्कि इसलिए कि यहाँ जो रिश्ता जुड़ता है वो बिना किसी स्वार्थ और मतलब के जुड़ता है ।। इसके बाद जिंदगी में जुड़ने वाला रिश्ते बस किसी मतलब से जुड़ता है और मतलब पूरा होने के बाद वो रिश्ता खत्म हो जाता है ।।
कहीं पढ़ा था मैंने बचपन होली जैसी होती हैं , जवानी दिपावली और बूढ़ापा सर्दी के बाद आने वाला पोंगल , लोहड़ी और मकर संक्रांति जैसे ही होती हैं यानि कहने का तात्पर्य यह है कि बूढ़ापा
सबकी अलग-अलग गुजरती हैं जैसे यें त्यौहार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता हैं कुछ उसी प्रकार ।।
कहते सुना है लोगों से रिश्तों में वो प्रेम हीं नहीं रहा जो रिश्तों को एक मायने और मुकाम देता है ।
रिश्तों के कमज़ोर पड़ने पर उसे मजबूत बनाता हो , ऐसा प्रेम जीवनपर्यंत हमारे बीच होना चाहिए ।‌।
एक बात पता है आप सबको आजकल लोग भीड़ में तन्हा होते हैं ऐसा खुद मैंने
अनुभव किया और ऐसे कई लोगों से मिला हूँ
जो इस अकेलेपन के शिकार थें जिन्हें भीड़ में कोई
दिलचस्पी नहीं थीं ।।
मेरी बात हमेशा याद रखना , कि रिश्ता कैसा भी वो जिंदगी को कभी तन्हा नहीं रहने देता और हम अगर रिश्तों में एक-दूसरे की गरिमा और ख़्याल रखतें हुए गुजारें तो वो जिंदगी को एक खुबसूरत मोड़ देता है हर क्षण भर पल चाहें वो रिश्ता कोई भी हो जैसे एक माता-पिता का हो , भाई-बहन का हो , पति-पत्नी का हो या फिर जिंदगी के सफ़र में किसी
अजनबी से हीं क्यों ना हो ।।

इसी पर दो पंक्तियाँ लिखीं हैं मैंने...

" हम महफ़िल में तन्हाई के नगमे गाते रहें और
उस महफ़िल में लोगों थें कि वाह वाह करते रहें "






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