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प्रलोभन ,सुख और भोग रूपी निद्रा
हमारे जीवन में जो भी लक्ष्य या जो भी चीज़ हमसे सालो की तपस्या ,प्रयास ,अभ्यास ,अनुशासन और परिश्रम मांगती है ; अक्सर हमारे मन द्वारा उसके एक क्षणिक सुख के प्रलोभन को पूरा करने में हमसे छीन ली जाती है ; हम अपने सालो की मेहनत को मन के हल्के से कमज़ोर पड़ने पर बस यूं ही गवां देते है। क्या यह ठीक है ? नहीं ना। यदि आप आपने मन को मजबूत बनाने में लगे रहेंगे तो मन कभी ना कभी तो इस निद्रा रूपी माया और प्रलोभन के दैत्य की चपेट में आना ही है ,इसे मजबूत ना बनाएं ,इसे जागृत करे। भोग ,सुख और लोभ की घोर निद्रा में जाने से तुरंत पहले ही इसे झटके देते रहे ,जैसे कभी कभी आप स्वयं को जागृत रखने के लिए कैसे स्वयं को और इस शरीर को झटकते रहते है ,ठीक उसी प्रकार। अंतर इतना है कि शरीर की निद्रा अवश्यंभावी है किंतु मन की निद्रा नहीं। शरीर की निद्रा हमारे हाथ में नही ,किंतु माया और प्रलोभन रूपी इस निद्रा में जाने ना जाने का विकल्प सदैव हमारे हाथ में रहता है। प्रारंभ में कष्ट और पीड़ा का अनुभव हो सकता है ; असल में वह कष्ट या पीड़ा नही होंगे ,पर आपका मन आपको यह बता कर ,ऐसा अनुभव करवा कर आपको भ्रमित करने का प्रयास अवश्य करेगा। आपको उन्हे कष्ट और पीड़ा के रूप में स्वीकर करने के लिए मजबूर करेगा ; आपको अपने वेग में खींचने का प्रयास करते रहेगा ; आपको ललचाएगा लुभाएगा ,आपको सुख और भोग की भिन्न भिन्न कल्पनाएं देगा ; आपको ज़माने भर के तर्क देगा ; आपको यह समझाएगा कि यह सामान्य है , प्राकृतिक है ,सभी जन साधारण ऐसा करते है ,आप भी ऐसा करते है तो कुछ गलत नहीं ; आपको समझाएगा की किस प्रकार आप आनंद से वंचित रह जाएंगे ,अपने जीवन को बेकार ही इस अथक प्रयास में बीता देंगे। और यह भी समझाएगा की यह मानव प्रकृति है और माया में पड़ना ना पड़ना कोई विकल्प नहीं ,यह अपरिहार्य है। ज्यादा प्रतिरोध की अवस्था में आपको स्वयं के अस्तित्व और ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न करने को मजबूर भी कर सकता है। किंतु आपको केवल और केवल इस बात पर अडिग रहना है की यह समस्त चीजे ,विचार ,कल्पनाएं अथवा भावनाएं समय के साथ लुप्त हो जाएंगी ; एक समय के बाद यह खुद गायब हो जाएंगी ; जितना अधिक हो सके आपको इन पर ध्यान नहीं देना है ,इनका मनोरंजन नही करना है ,इनका प्रतिरोध करने में समय और उर्जा देकर इन्हे महत्व प्रदान नही करना है ; स्वयं को अधिकाधिक व्यस्त रखने का प्रयास करे। आपको यह समझना और इस चीज विश्वास करना ही होगा कि यह सब अस्थायी है ,यह सब आपको हमेशा नही सताएंगी ,एक समय के बाद यह आपका पीछा छोड़ देंगी। प्रारंभिक समय में यह आपको अपने स्थायी होने और हमेशा साथ रहने के विचार से भयभीत भी कर सकती है। पर आपको डरना और घबराना नहीं है ,आपको अपना विश्वास कायम रखना है कि यह अस्थाई है और इनका जाना तय है। कुछ समय बीतने के बाद आप देखेंगे कि चीजे सरल और आसान होने लगी है ,आपकी खुद के मन पर पकड़ बनने लगी है ,अब आपका मन रूपी जंगली घोड़ा कुछ तो पालतू होने लगा है ; इसे ऐसे ही चलने दे ,अपनी जीवनशैली में कुछ भी परिवर्तन ना करे ,अंहकार में ना आए ,अभी भी आपका मन रूपी घोड़ा पूरी तरीके से आपके नियंत्रण में नही आया है। अनुशासन और अभ्यास वैसे ही बने रहने दे ,खैर इनका साथ और हाथ तो आपको जीवन भर के लिए थाने रखना होगा ,क्योंकि जंगली जानवर पालतू बन सकता है तो इसका उल्टा भी संभव है। अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने के बाद भी अहंकारवश अपने अभ्यासों और अनुशासन का साथ कभी मत छोड़ना ,क्योंकि जो एक सीढ़ी से गिरता है उसे उतना दर्द नही होता ,किंतु पहाड़ जितनी ऊंचाई से गिरने पर दर्द तो छोड़िए मृत्यु भी हो सकती है ; इतनी मेहनत और प्रयास करने के बाद जब आप किसी स्थान पर पहुंचेंगे तो वह बने रहना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि यदि इतनी ऊंचाई से यदि आप गिरे ,तो यकीन मानना आत्मग्लानि और पश्चाताप की कोई सीमाएं नही होंगी। निजी अनुभव से आपको बता रहा हूं। वापस शीर्ष पर लौटता हूं ; तो प्रारंभिक अवधिकाल के बाद आप अनुभव करेंगे कि प्रलोभन रूपी निद्रा का वैग अब आपको बार बार नही सताता है ; पहले जो दिन में १० बार परेशान करता था अब वह साप्ताहिक हो चुका है। धीरे धीरे और अधिक अभ्यास और अनुशासन के साथ इसकी आवृत्ति मासिक और फिर वार्षिक भी हो जायेगी। एक समय ऐसा भी आएगा जब यह आपको बिलकुल भी नहीं सताएगा ,किंतु स्मरण में रखना ,एक मानव के अस्तित्व में भोग ,सुख और प्रलोभन का बीज अवश्य वास करता है ,उसे आप बांध देते है , निष्क्रिय कर देते है ,किंतु वह कभी भी पूर्ण तरीके से नष्ट नही हो सकते ,जिस प्रकार भस्म होने के बाद भी राख तो रह ही जाती है। इसलिए आप स्वयं में कितना भी स्थापित हो जाए ,कभी भी अंहकार को अपने पास भी ना फटकने दे। क्योंकि ये अंहकार ही है जो उस बीज को मुक्त करता है ,उसे वापस सक्रिय करता है। आप सभी का शुभ और मंगल हो ,ऐसी कामना करता हूं।
© vibstalk