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प्रलोभन ,सुख और भोग रूपी निद्रा
हमारे जीवन में जो भी लक्ष्य या जो भी चीज़ हमसे सालो की तपस्या ,प्रयास ,अभ्यास ,अनुशासन और परिश्रम मांगती है ; अक्सर हमारे मन द्वारा उसके एक क्षणिक सुख के प्रलोभन को पूरा करने में हमसे छीन ली जाती है ; हम अपने सालो की मेहनत को मन के हल्के से कमज़ोर पड़ने पर बस यूं ही गवां देते है। क्या यह ठीक है ? नहीं ना। यदि आप आपने मन को मजबूत बनाने में लगे रहेंगे तो मन कभी ना कभी तो इस निद्रा रूपी माया और प्रलोभन के दैत्य की चपेट में आना ही है ,इसे मजबूत ना बनाएं ,इसे जागृत करे। भोग ,सुख और लोभ की घोर निद्रा में जाने से तुरंत पहले ही इसे झटके देते रहे ,जैसे कभी कभी आप स्वयं को जागृत रखने के लिए कैसे स्वयं को और इस शरीर को झटकते रहते है ,ठीक उसी प्रकार। अंतर इतना है कि शरीर की निद्रा अवश्यंभावी है किंतु मन की निद्रा नहीं। शरीर की निद्रा हमारे हाथ में नही ,किंतु माया और प्रलोभन रूपी इस निद्रा में जाने ना जाने का विकल्प सदैव हमारे हाथ में रहता है। प्रारंभ में कष्ट और पीड़ा का अनुभव हो सकता है ; असल में वह कष्ट या पीड़ा नही होंगे ,पर आपका मन आपको यह बता कर ,ऐसा अनुभव करवा कर आपको भ्रमित करने का प्रयास अवश्य करेगा। आपको...