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Life
अक्सर जिंदगी के रास्तों पर घूमते हुए महसूस हुआ कि एक गुज़री हुई उम्र ने कुछ सपने पूरे होने का वादा थमाया था ... और जो सपने, वादे , पूरे नहीं हुए उनको भाग्य नाम के किताब पर छोड़ दिया ..हां बचपन से यहीं तो सीखा दादी से , सबसे , पर एक दिन खयाल भी आया कि भाग्य नाम कि उस किताब में अगर सब कुछ लिखा होता है तो उसे हम कभी पढ़ क्यों नहीं पाते .. हम बस ईश्वर से प्रार्थना करते है कि मेरे ये कुछ अधूरे सपने है उन्हें पूरा करने की शक्ति दो .. या पूरा कर दो या जब भी पीड़ा हुई ईश्वर के पास पहुंच जाते है ..प्रार्थनाएँ पीड़ा के हिस्से ज़्यादा आती हैं प्रार्थनाओं का अपना एक (अच्छा ही कहूंगी) स्वभाव होता है कि वे सदैव झुकी हुई होती हैं.. उस वक्त इंसान भी शायद ..और जब सपने पूरे हो जाए तब वो पूरे होने का श्रेय खुद ले जाता है .. तब उसे भाग्य, ईश्वर का खयाल भी आता है ? इन सारी बातों में मुझे नहीं जाना क्योंकि ये मेरा एक वाहियात खयाल ही है कि हम भाग्य की किताब पढ़ लेते तो क्या होता ? ( जानती हूं थोड़ी सी स्टुपिड हूं मै)

बढ़ती हुई उम्र में ऐसा-ऐसा किया होता तो ये होता का ख़्याल भी पीछे से कंधा थपथपाता है ,मैं देखने को पीछे मुड़कर देखती हूं तो दिखता है छूटा हुआ रास्ता ,पेड़ और रास्ते के किनारे-किनारे चलते वो छुटे हुए लम्हें शायद जिन्हें हम जीना भूल गए , इन सब रास्तों में कुछ मोड़ भी है जहां शायद बहुत कुछ हुआ था या किसी मोड़ से मूड जाती तो बहुत कुछ हो सकता था कि एक अलग कहानी है ..जिसको लिखने की अनुमति उस ख़्याल, लंबी उम्र और रास्ते किसी ने नहीं दी ..!

हां शायद बहुत कुछ हो सकता था और बहुत कुछ हो गया है इसके बीच मे कही ठहर सी गई हूं ..एक ऐसे मोड़ पर फिर से जहां से बहुत कुछ हो सकता है या बहुत कुछ हो जाएगा ?