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पचास रुपये की दिवाली

" पचास रुपए की दिवाली " एक लघुकथा

यह एक ऐसे दिन की बात है, जिस दिन हमारे यहां एक खास पर्व दिवाली का त्यौहार था। इस मौके पर सभी के घरों में बहुत ही अच्छी प्रकार से दीपावली मनाई रही थी। और सभी बहुत खुश थे । सभी ने नये नये कपड़े पहने हुए थे। और बड़े ही उत्साह से सभी दिवाली का यह त्यौहार मना रहे थे। किंतु एक घर जिसमें दिवाली के दिन भी सन्नाटा और अंधेरा छाया हुआ था । जहां ना रोशनी थी और ना ही किसी के हंसने का शोर । जहां सभी के मुंह घर की गरीबी से मुरझाये हुए थे, वह घर केवल हमारा ही था । एक उपरांत मां ने अपने गल्ले में कुछ 50 रुपये कहीं बचा कर रखें थे । अत:माँ ने पापा को लक्ष्मी पूजन की सामग्री लाने के लिए ₹50 दिये। पापा उन ₹50 के लक्ष्मी पूजन की सामग्री लाए थे । यहां मेरे चाचा और उनके परिवार एक बड़े ही उल्लास के साथ इस पर्व को मना रहा था और दूसरी तरफ हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि उनसे दिवाली मना पाये।उस समय पापा के पास मात्र पचास रुपए ही थे और फिर उनसे तो दिवाली की पूजन सामग्री भी नहीं आ पाती।
इधर चारों ओर खुशियों के द्वार खुले हुए थे बाकी एक यही घर ऐसा था की रोशनी तक मैं भी अंधेरा-सा ही प्रतीत हो रहा था।
उस दिन चाचा चाची आदि सभी लक्ष्मी जी की वे मिठाइयां पटाखे आदि सारी सामग्रियां लाए थे ।और एक तरफ मेरे पिता से जोकि ₹50 में केवल एक लक्ष्मी का पाना और कुछ छोटी-मोटी सामग्री लेकर आए थे । हालांकि मेरे चाचा चाची व आदि सभी ने मुझे भी मिठाई व पटाखे आदि दिये। किंतु मैं भी अपने परिवार को देखकर बहुत ही उदास हो जाता ,क्योंकि यहां मैं बाहर पटाखे फोड़ रहा होता और एक तरफ मेरा परिवार उदास मन से दिवाली पूज रहा था। मैं उन्हें देख कर मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा होता कि है ईश्वर आपने यह गरीबी में क्यों बनाया है ।
इस प्रकार के और भी मन में कई प्रसन्न उठते जैसे -यह बगल वाला पड़ोसी ₹50 जिनकी मासिक आय हैं ,वे ही अपने घरों को रंग बिरंगा कर रहे हैं ,साज सज्जा कर रहे हैं ।अपने घरों की सफाई कर रहे हैं दूसरी ओर हमारे घर में उदासी का मातम और गृह -कलेश छाया हुआ है। क्योंकि जब इसके साथ ही जो अगल-बगल के पड़ोसी हैं। वे मौका पाकर हमारा मजाक उड़ाते थे!इन्हीं बातों से मुझे हैरानी होती ,और मैं भी उदास रहता था।ऐसी थी हमारी एक दिवाली.......।

लेखक -जितेन्द्र कुमार "सरकार"दौसा राजस्थान ✍️✍️