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नशे की रात ढल गयी-11
नशे की रात ढल गयी ..(11) ..इस संसार में इतने साल गुजारने के बाद अब जाकर मुझे आत्म-ज्ञान सा हुआ है कि ये संसार एक छलावा है ..एक खूबसूरत फरेब । किसी चीज के प्रति अगर आप गलतफहमी में नहीं हैं ..तो यकीनन आप किसी खुशफहमी में है । और जहाँ तक मेरा ताल्लुक है मैं इस फरेब की कला में शुरू से ही माहिर रहा हूँ । मैंने अपने बारे में लोगों को अक्सर कहते सुना है --बहुत सीधे हैं । मगर सच तो ये है कि मैं किसी ऐंगिल से सीधा नहीं हूँ । .. मैं और सीधा? ..उल्टे मैंने औरों के सीधेपन से फायदा ही उठाया है । मेरी माँ बहुत सीधी थी , मैंने जो भी कहा उसे अक्षरसह सत्य मान लिया । उसने हमेशा मुझे क्लिन-चिट ही दिया । लोग तरह-तरह की शंकाँए करते - आपका लाढला बिगड़ रहा है ,उसकी सोहबत ठीक नहीं , पूछिए उससे रात इतनी देर तक कहाँ रहता है ..? मगर वह मेरे खिलाफ लगने वाली हर तोहमत को एक शिरे से खारिज कर देती ।उसने हमेशा मुझे श्रवण बेटा ही माना .. मगर बाबूजी मेरे मामले में सदैव शंकालु प्रवृत्ति के रहे , उनकी नजर में मैं हमेशा शक के दायरे में ही रहा । उनकी निगाह में -'मेरा नाम करेगा रौशन' -वाली इमेज मेरी कभी नही रही ।
बाद में बहुत पापड़ बेलने के बाद बैंक की नौकरी मिली -इलाहाबाद बैंक में ।फिर नौकरी ने मुझे धीरे-धीरे बहुत कुछ दिया ..मान-सम्मान, पत्नी , एक पर एक तीन खूबसूरत सी बेटियाँ और सबमें छोटा एक कुल-दीपक (बेटा) । जब पहली बेटी का जन्म हुआ तो घर में खुशी का माहौल था । पिता जी को लगा कि घर में लक्ष्मी आयी है ,अपनी पीठ पर भाई लेकर आयेगी -इसीलिए पीठपुजाई की रश्म भी हुई ।लेकिन फिर जब दूसरी और तीसरीबार भी लक्ष्मी का ही आगमन हुआ तो घर में उस वक्त मातम जैसा सन्नाटा छा गया । मुझे याद है जब बाबूजी को तीसरी लड़की की खबर मिली तो वे सन्न रह गये ,उन्होंने सामने से खाने की थाली लौटा दी । उनकी आँखों में मेरे प्रति तिरस्कार का भाव था ..जैसे कह रहे हो-तुम तो वंश-विनाशक हो ।मुझे लगा मैं भी कहीं सचमुच बहादुरशाह जफर तो नहीं हो गया हूँ ..

(आगे फिर कभी )