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मैं और चांद पार्ट-4
"चांद का महत्व-1"

आज मैं रोज से थोड़ा जल्दी अपने काम खत्म करके, छत पर पहुंच गया, और निकलते हुए चांद की खूबसूरती को निहारने लगा। थोड़ी देर बाद चांद आसमान में चमकने लगा और मेरा इंतजार खत्म हुआ।

चांद ने आते ही पूछा - "आज इतना जल्दी आ ग‌ए?"
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:- "मैं तुम्हारे उगते समय, तुम्हारी खूबसूरती देखना चाहता था।"
"अच्छा तो फिर क्या देखा?" चांद ने हंसते हुए पूंछा।
मैंने भी जवाब दिया:- "तुम बहुत खूबसूरत लग रहे थे, कैसे धीरे-धीरे तुम्हारी चांदनी बढ़ रही थी और तुम निखरते जा रहे थे। तुमने धीरे-धीरे सूरज की गर्मी को अपने अंदर सोखकर, धरती को ठंडा कर दिया और इस अंधकार को भी रोशनी से भर दिया।"
चांद ने मुस्कुराते हुए सवालिया अंदाज में कहा- "मेरी चांदनी?, पर वो मेरी तो है ही नहीं।"
मैंने अचरज भरी नजरों से देखते हुए पूछा - "मतलब?"
तब चांद कहने लगा:- "तुम जिस चांदनी/चमक की बात कर रहे हो, वह तो मैं सूर्य से ही उधार लेकर धरती तक पहुंचाता हूं।"
मैंने कहा- "अच्छा, इस बारे में सब कुछ विस्तार से बताओ न।"
चांद ने कहा - "अच्छा , तो सुनो। तुमने कभी आइने की मदद से सूरज की रोशनी को किसी अंधेरे कमरे में भेजा है?"
मैंने कहा:- "हां, बहुत बार किया है।"
तब चांद आगे कहने लगा:- "तो मुझे तुम उसी आइने की तरह समझो। जिस प्रकार वह आइना अपने ऊपर पड़ने वाली रोशनी की दिशा को परिवर्तित करके अंधेरे कमरे में भेजता है, ठीक उसी तरह से मैं भी अपनी तरफ आती सूरज की रोशनी को...