...

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दो बोल नारी पर भारी
औरत हूं इसलिए मैं झुक जाती हूं
अपनी बेलगाम दिल के खातिर फंस जाती हूं अगर कोई तोलना चाहे तो सारी सृष्टि एक तरफ
मैं एक तरफ
इतना भारी पलड़ा होते हुए भी
प्यार के दो मीठे बोल में बिक जाती हूं
नारी हूं लेकिन प्यार की मारी
एक नारी की पूंजी उसकी इज्जत होती है लेकिन शादी के बाद एक नारी प्यार के खातिर अपनी यह पूंजी अपने जीवनसाथी को सौंप देती है
एक नारी के लिए धन , दौलत मिट्टी के ढेर के समान है
उसके लिए प्यार ही सारी दुनिया है
एक औरत कुछ नहीं बस प्यार की मूरत है
एक औरत हमेशा प्यार में ठगी जाती है
कभी समाज के द्वारा तो कभी समाज के ठेकेदारों के द्वारा
तो कभी मां बनकर
कभी बेटी बनकर
कभी बहू बनकर
कभी सास बनकर
कभी पत्नी बनकर
जिस शक्ति पर देवता भी अंकुश ना लगा सके वह काम केवल प्यार ने कर दिखाया
प्यार जो ऐसा एहसास जो कभी पूरा ना किया जा सके
जिसके आगे सब शून्य हैं ना इसे शब्दों में बांधा जा सके
इसे तो केवल राधा-कृष्ण ही महसूस कर सकें।