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वेद सही या ग़लत?
मैने हाल ही में वेदों को पढ़ना शुरू किया है और जिसकी शुरूवात मैने ऋग्वेद से करी है। वेदों को पढ़ने का मेरा शुरू से ही काफी मन था और इसका सबसे बड़ा कारण है वेदों के बारे में जो हमने सुना है अब तक क्या वो वाकई सही है और क्यों माननीय दयानंद सरस्वती जी ने आजादी से पूर्व हमे वेदों की ओर लौटो का नारा दिया और क्यों उनके विरोधी वेदों को अंधविश्वास और बेकार बताते हैं। हाल ही में मै ऋग्वेद पढ़ रही हूं और इसको अब तक मैने जितना भी पढ़ा है उससे मुझे बस यही बात समझ आई है कि वेद कोई साधारण या कोई बहुत ही महान पुस्तक न होकर वो पुस्तक है जो हमे वैदिक सभ्यता के बारे में बताती है जिसका मुख्य उद्देश्य आज की ओर भविष्य की पीढ़ी को यह बताना है कि हमारी संस्कृति की vedic सभ्यता कैसी थी और क्या होता था उस समय कौनसे देव पूजे जाते थे और तब की इकोनॉमी कैसे काम करती थीं। जितना मैने इसे पढ़ा और समझा है उसके मुताबिक वैदिक सभ्यता की शुरुवात धार्मिक कार्यों से होकर और उन्ही से संबंधित कार्यों पर समाप्त होती थी। जिसमे ईश्वर पंचतत्व, अश्विन कुमार और उषा देवी प्रमुख थी। जिसमे महानता इंद्र देव की है। हमे आज तक vedic सभ्यता में यह पढ़ाया गया कि इंद्र देव को दुर्ग तोड़ने वाला कहा जाता था लेकिन किसके यह नही बताया गया। ऋग्वेद के अनुसार इंद्र देव यदि किसी पर कहर बनकर टूटते थे तो वे है उनके और ऋषिगणों के शत्रुओं पर और इसके अलावा ऋग्वेद में काफी बार सोमपान की चर्चा भी हुई है जिसे आज के समय में मदिरा से जोडा जाता हैं जबकि ऋग्वेद के अनुसार सोमपान का अर्थ है जो हमारी आत्मा को संतुष्ट कर सके और हमें ऊर्जा से युक्त कर सके क्योंकि मां के दूध को भी इसमें सोमपान की संज्ञा दी है। जिसे आज के समय ने अपनी ही परिभाषा में बदल कर सालों पुरानी सभ्यता और संस्कृति पर एक कलंक लगा दिया है। अतः सभी से मेरा आग्रह है कि सभ्यता से जुड़े किसी भी शब्द या वस्तु का वर्तमान समय में अपने हिसाब से प्रयोग करने से पहले यह अवश्य जांच ले कि जिस आधार पर आप उसका प्रयोग कर रहे हैं क्या वाकई में वो शब्द या वस्तु उसी आधार और अर्थ में प्रयोग हुई है या नहीं......

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© sunshine