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राधारानी ने पहनी छीन कर पोशाक..❤️❤️✍️✍️
एक संत बरसाना में रहते थे और रोज सुबह
उठकर यमुना जी में स्नान करके राधा जी के
दर्शन को जाया करते थे। ये नियम रोज का था।
जब तक राधा जी दर्शन नहीं कर लेते थे,तब
तक जल भी ग्रहण नहीं करते थे।
दर्शन करते-करते तकरीबन उनकी उम्र 80 वर्ष की हो गई। आज सुबह रोज की तरह उठे। जमुना में स्नान किया। और राधा रानी के दर्शन को चले गए मंदिर के पट खुले। और राधा रानी के दर्शन करने लगे। दर्शन करते-करते संत के मन में भाव आया कि- मुझे आज राधा रानी के दर्शन करते-करते 80 बरस हो गए। लेकिन मैं राधा रानी को आज तक कोई भी वस्त्र नहीं चढ़ाया। कोई राधा रानी को नारियल लाता है चूड़ी लाता है। कोई चुनरिया रहता है कोई साड़ी लाता है। कोई हार नाता है कोई लहंगा चुनरिया लाता है। लेकिन मैं आज तक कुछ भी नहीं चढ़ाया है। यह विचार संत जी मन में आया कि- जब सभी मेरी राधा रानी के लिए कुछ न कुछ लाते हैं, तुम्हें भी अपनी राधा रानी के लिए कुछ ना कुछ लेकर जरूर आऊंगा। लेकिन क्या लाऊं? जिससे मेरी राधा रानी खुश हो जाए।
तू सुनती ही यह सोचकर अपनी कुटिया में आ गए। सारी रात सोचते सोचते सुबह हो गई।
उठे, उठकर स्नान किया। और आज अपनी कुटिया में ही राधा रानी के दर्शन पूजन किये।
दर्शन के बाद बाजार में जाकर सबसे सुंदर लहंगा चुनरिया का कपड़ा लाये। और अपनी कुटिया में आकर के अपने ही हाथों से लहंगा चुनरिया सिला। और सुंदर से सुंदर उसे लहंगा चुनरिया में गोटा लगाये। जब पूरी तरह से लहंगा चुनरिया को तैयार कर लिया। तो मन में सोचा कि इस लहंगा चुनरिया को अपनी राधा रानी को पहनाऊंगा तो बहुत ही सुंदर मेरी राधा रानी लगेगीं। यह सोच करके आज संत जी उस लहंगा चुनरिया को लेकर राधा रानी के मंदिर को चले। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे। और अपने मन में सोच रहे हैं-आज मेरे हाथों के बने हुए लहंगा चुनरिया राधा रानी को पहनाऊंगा।
तो मेरी लाडली बहुत सुंदर लगेंगीं। यह सोचकर जा रहे हैं इतने में एक बरसाना की लड़की आई
और बाबा से कहती है- बाबा आज आप बहुत ही खुश हो क्या बात है? बाबा बताओ ना।
तो बाबा ने कहा- लाली आज मैं बहुत खुश हूं।
आज मैंने अपने हाथों से राधा रानी के लिए लहंगा चुनरिया बनाया है। इस लहंगा चुनरिया हो राधा रानी को पहनाऊंगा और मेरी राधा रानी बहुत सुंदर दिखेंगीं।
उस लाली ने कहा- बाबा दिखाओ ना आपने लहंगा चुनरिया कैसी बनाई है?
लहंगा चुनरिया को देखकर वो लड़की बोली- अरे बाबा राधा रानी के पास तो बहुत सारी पोशाकें हैं तो ये मुझे दे दो ना।
तो महात्मा बोले- बेटी में तुमको दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा। ये तो मैं अपने हाथ से बना कर राधा रानी के लिए लेकर जा रहा हूं। तुमको और कोई दूसरा दिलवा दूंगा। लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा जी
का दुपट्टा पकड़ लिया।
और बोली- बाबा ये मुझे दे दो।
पर संत भी जिद करने लगे कि
ये नहीं दूंगा कोई दूसरी दिलवाऊंगा।
लेकिन वह बच्ची भी इतनी तेज थी कि संत के हाथ से छुड़ा लहंगा चुनरिया को लेकर भाग गई।
अब तो बाबा को बहुत ही दुख हुआ कि मैंने आज तक राधा रानी को कुछ नहीं चढ़ाया। लेकिन जब लेकर आया तो लाली लेकर भाग गई। मेरा तो जीवन ही खराब है अब मैं क्या करूंगा? यह सोचकर संत इस सीढ़ियों पर बैठकर होने लगे। इतने में कुछ संत वहां आए और पूछा-क्या बात है बाबा? आप क्यों रो रही हैं। तो बाबा ने उन संतों को पूरी बात बताई,
संतों ने बाबा को समझाया और कहा कि - आप दुखी मत हो,कल दूसरी लहंगा चुनरिया बनाकर राधा रानी को पहना देना। चलो राधा रानी के दर्शन कर लेते हैं। इस प्रकार संतों बाबा को समझाया और राधा रानी के दर्शन को लेकर चले गए। रोना तो बंद हुआ लेकिन मन खराब था। क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई ना, तो अनमने मन से राधा रानी के दर्शन करने संत जा रहे थे।
और मन में यही सोच रहे हैं कि मुझे लगता है कि किशोरी जी की इच्छा नहीं थी, शायद राधा रानी मेरे हाथों से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी। ऐसा सोचकर बड़े दुखी होकर जा रहे थे। मंदिर जाकर राधा रानी के पट खोलना का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद मंदिर के पट खुले तो संतो ने कहा- बाबा देखो तो आज हमारी राधा रानी कितनी सुंदर लग रही हैं।
संतों की बात सुनकर के जैसे ही बाबा ने अपना सिर उठाकर के देखा तो जो लहंगा चुनरिया बाबा ने अपने हाथों से बनाए थे वही आज राधा रानी ने पहना था। बाबा बहुत खुश हो गए और राधा रानी से कहा - हे राधा रानी आपको इतना भी सब्र नहीं रहा कि आप मेरे हाथों से लहंगा चुनरिया मंदिर की सीढ़िया से ही लेकर भाग गई, ऐसा क्यों?
सर्वेश्वरी श्री राधा रानी ने कहा कि- बाबा आपके भाव को देखकर मुझे रहा नहीं गया और यह केवल पोशाक नहीं है इसमें आपका प्रेम भी है।
इसलिए तो मैं खुद ही आपसे लहंगा चुनरिया लेकर भाग गई थी। इतना सुनकर के बाबा भाव विभोर हो गए और उन्होंने उसी समय राधा रानी का धन्यवाद किया।

🌹राधे राधे,बरसाने वाली की जय🌹


© Shaayar Satya