...

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अस्पष्ट-जीवन!
कोई है जो है मेरे आस पास,पता नहीं कौन?
क्या वो भूत है या कोई परछाई...नहीं पता या सब कुछ दिमाग़ का खेल है,सबकुछ इल्लूजन।हकीक़त में,ये पूरी ज़िन्दगी ही इल्यूजन है,जो अंधेरा से अलग रहना चाहती है,और,चमकती-चीज़ के तरफ़ जाना चाहती है।
हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती,वो चमकती हुई मेटल से बनी छुरी भी हो सकती है,जिससे आप हलाल होने वाले हो,भविष्य किसने देखा है?
ज़िन्दगी के बारे में लिखना नामुमकिन है,क्योंकि,इसकी परिभाषा समय के साथ बदल जाती है,पर,सिर्फ़ सही कर्म साथ रहता है!
© Abdul Ahad GujBihari
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