...

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दूसरी मोहब्बत
एक रात वो नाराज़ थी हमसे,
हमने भी कलम उठाई और बोला

“जान पलकों पर रख कर
नुमाइश करेंगे तुम्हारी,
तुम एक बात बताओ,
क्या मोहब्बत बनोगी हमारी?”

जवाब में वो बोली:- “ कहना क्या चाहते हो साफ कहा करो यूं शब्दों में मत घुमाया करो”

मैंने फिर कलम उठाई और बोला:-
“प्यार का इज़हार करूं तो काफ़िर
और न करूं तो कुफर कहलाता हूं,
हर बार तुम्हे देख कर तुम्हारी ही आंखों में ही खो जाता हूं।”

वो हल्का सा मुस्कुराई और आंखे नीचे करके शर्माने लगी और बोली:- “क्या सच में इतनी मोहब्बत करते हो तुम?”

मैनें फिर कलम उठाई और कहा,
“पलकों पर बिठा के
अर्श पर रखूंगा,
फर्श तो तुम्हे दिखाऊंगा भी नही,
खुद भले ही कांटों पर चल लूंगा,
अंगारे तो तुम्हे दिखाऊंगा भी नही।”

© sharma