"प्यार से इश्क़ तक का सफर" - Chapter 2
प्यार एक खुले आसमान के जैसा है, जिस तक जितना पहुंचने की कोशिश करो, वो उतना ही ऊँचा उठता जाता है। कभी मैंने भी इस गगन-नुमा प्यार को हाथों से छूने की बेतहासा कोशिश की थी।
उन दिनों, मैं अपने प्यार का इज़हार करके, उसे पा के दुनिया जितने 'जितनी' ख़ुशी में था। कहने को तो ये दुनिया बहुत बड़ी है, पर मेरी दुनिया उस लड़की पर जा सिमटी थी, जिससे मुझे अभी-अभी प्यार हुआ था। मैं हर सुबह जब ट्यूशन जाता उससे मिलता, तो मेरी बस एक ही तमन्ना होती के मैं बस उस लड़की में ही उलझा रहूं, जो मेरी दुनिया है। ये कैसा उत्साह था मेरे अंदर मैं नहीं जानता।
उसे हर रोज़ मैं थोड़ा-थोड़ा समझने की कोशिश करता, मैं जब भी उसके हर एक पन्ने को पलट कर देखता, तो मुझे उसे जानने की इतनी ही जिज्ञासा होती, जितनी एक नयी कहानी को पढ़ कर...
उन दिनों, मैं अपने प्यार का इज़हार करके, उसे पा के दुनिया जितने 'जितनी' ख़ुशी में था। कहने को तो ये दुनिया बहुत बड़ी है, पर मेरी दुनिया उस लड़की पर जा सिमटी थी, जिससे मुझे अभी-अभी प्यार हुआ था। मैं हर सुबह जब ट्यूशन जाता उससे मिलता, तो मेरी बस एक ही तमन्ना होती के मैं बस उस लड़की में ही उलझा रहूं, जो मेरी दुनिया है। ये कैसा उत्साह था मेरे अंदर मैं नहीं जानता।
उसे हर रोज़ मैं थोड़ा-थोड़ा समझने की कोशिश करता, मैं जब भी उसके हर एक पन्ने को पलट कर देखता, तो मुझे उसे जानने की इतनी ही जिज्ञासा होती, जितनी एक नयी कहानी को पढ़ कर...