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' ईश्वर: सत्य या असत्य '🌿🌺
' ईश्वर: सत्य या असत्य '

कुछ लोग पत्थर को अपना भगवान मानते हैं।
कुछ लोग भगवान को भी पत्थर कह देते हैं।
कुछ लोग इंसान को भी भगवान बना लेते हैं।
कुछ लोग इंसान को इंसान भी नहीं मानते।
बात इतनी सी है, कि इंसान ही भगवान है।
वो इंसान; जो आपकी फिक्र करता है,
आपका भला चाहता है, आपसे प्रेम करता है।
ऐसा मान लेना ही हितकर है सबके लिए।
मैं आस्तिक हूं; एक नाराज आस्तिक।
जो ईश्वर को पत्थर कहता है।
जिसे ईश्वर में आस्था से ज्यादा
उसकी कहानियों में रुचि है।
पर वो नास्तिक नहीं है।
उसे आस्था भी है परंतु उतनी नहीं।
उसे ईश्वर के प्रति संशय है।
और ये कोई अपराध नहीं है।
ईश्वर को हम आप नहीं जानते,
ईश्वर हमारे लिए अजनबी हैं।
हमने बस उसकी बातें पढ़ी-सुनी हैं,
जो किसी दूसरे ने लिखी-कहीं हैं।
क्या हमे ईश्वर पे विश्वास है?
या उस व्यक्ति पर भरोसा है?
जिसने सब लिखा या कहा।
ये प्रश्न है जिसे आपको खुद से पूछना है।
ध्यान देने वाली बात यह है,
कि उन लिखी-कही बातों को
नकारना उतना ही मूर्खता पूर्ण है,
जितना की उन पर आंख बंद करके
भरोसा कर लेना।
क्या ईश्वर सर्वव्यापी है या ईश्वर है ही नहीं?
जिसके मन में ये सवाल है,
वो चेतन है, वो खोजी है।
फिर भी वो नास्तिक नही है।
नास्तिकता मूर्खता है।
हम सब खुद को आस्तिक मानते हैं,
और समझते हैं कि हम ईश्वर को जानते हैं।
ईश्वर न तो झूठ है न ही सच।
वास्तव में वो तो अज्ञेय है।
तो हम में से अधिकांश लोग
न तो सच्चे आस्तिक हैं न ही सच्चे नास्तिक।
और यह स्थिती सर्वोत्तम है।
© Prashant Dixit 🌿