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प्रेम हुआ है तुझे
"सखी और मैं.. (संवाद)
मोही.... मोही.....
सखी ने मुझे आवाज़ दी..
वो अधिकांशतः मुझे 'मोही' नाम से बुलाती है.. कहती है अज्ञानी हूँ मैं.. सबसे मोह हो जाता है मुझे..
..
'क्या हुआ किसी से मिलती नहीं है , सखियां कहती हैं कोई रोग हुआ है तुझे.. चल बता क्या हो गया है'..? सखी ने मुझसे पूछा!
'कुछ भी तो नहीं'.. मैंने अनमने ढंग से कहा!
'फिर मिलती क्यों नहीं.. अम्मा बता रही थीं.. तू कुछ खाती भी नहीं है, खोई-खोई सी रहती है.. और वो तेरी पसन्द के गीत जिन पर तू थिरकती थी.. क्या अब थिरकना भूल गई है'..? सखी एक साँस में बोल गई!
'नहीं.. खुद को भूल गई हूँ'.. कहकर मैंने उसकी ओर देखा।
सखी ने मेरी आँखों में झांका, फिर मेरे सीने पर हाथ रख हृदय की गति को महसूस किया और अचानक मेरे हाथों को थाम कहने लगी..
'स्याह आँखें, निर्जीव देह, और बेरंग चेहरा
प्रेम हुआ है तुझे'.. सखी ने बड़ी ही सरलता से कहा!
उसके ऐसा कहते ही आँखों में रोक कर रखे आँसू अनवरत ही बहने लगे.. कानों में स्वर गूंज उठे.. "प्रेम हुआ है तुझे'
सखी ने मुझे अपने सीने में भींचकर कहा..
'प्रेम ग़लत नहीं है मोही.. फिर ये रूप क्यों'..
'जिसे प्रेम करती है उसे बताया'..?? 
'नाम क्या है उसका'..? 'चूम पाई उसे'..? सखी सवाल किए जा रही थी..
मैंने एक ही उत्तर दिया.. 'नहीं' और उठकर दूसरी ओर जाने लगी।
की अचानक वह कहने लगी.. 'भूल पाएगी उसे'..?
ये सुन मेरे कदम रुक गए।
मैंने सखी की ओर देख कहा.. नहीं.. कभी नहीं!
प्रेम है वो.. हाँ कभी उसे बता नहीं सकी, कभी कह ही नहीं सकी। उसके साये को भी चूमने का अधिकार नहीं है मुझे।
मगर प्रेम तो है और प्रेम को प्रेम करने का अधिकार नहीं चाहिए।
आधी रात को उठ कर चाँद में खोजती हूँ उसे, तो ये ग़लत तो नहीं। माथे पर उसके स्पर्श की वाहिमा करना ग़लत तो नहीं..
हाँ मगर उसे बताना रह गया। उसको लिखे ख़त मेरे कपड़ों के बीच दबे रह गए। उसे बताना था तुम बहुत पसंद हो मुझे, तुम पर नीली शर्ट मुझे सबसे ज़्यादा पसन्द है। तुम्हें देखते ही मुझे तुमसे प्रेम हो गया था। तुम्हारी आवाज़ मेरा सुकून है। उससे शिकायत करनी थी कि क्यों तुम मुझे ग़लत वक़्त पर मिले.. थोड़ा पहले मिल जाते..।
सखी, बहुत सारे सपने देखे थे मैंने.. मगर वो पूरे नहीं हो सकेंगे। मगर, हाँ! मुझे प्रेम रहेगा।
चुपकर 'मोही' अगर जानती है अधिकार नहीं है तो जोगन क्यों बन गई है.. हक़ीक़त को स्वीकार कर..!
'हक़ीक़त को स्वीकार कर लिया है मैंने सखी.. स्वयं को नहीं कर पा रही हूँ'.. ऐसा कह मैंने उसकी ओर देखा..
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अब वो चुप थी..एकदम चुप।
बस कमरे में उसके स्वर गूंज रहे थे.. 'प्रेम हुआ है तुझे'!

❣️❤️
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