प्रस्तावना
मुझे घिसी-पिटी बातों की आदत नहीं।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या,परन्तु सीमित संसाधनों के दृष्टिगत यह चल भी न पायेगा।
हमें नवाचार से भी आगे बढ़ क्रान्तिकारी कदम उठाने ही होंगे।
1+1=2 पढ़ाने से समस्याये हल नहीं होती।
जरा सोचिये,अमरीका की जनसंख्या हमारी चौथाई भी नहीं। परन्तु कृषि क्षेत्र से ले खनिज तक हमसे पांच गुने से भी अधिक। यानि की प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधन 20गुने से भी अधिक।
बौद्धिक संपदा की बात करना भी बेमानी होगी।वैसे भी विषय से बाहर।
अतः हमें 1+1=4 या इससे भी आगे की सोचना ही होगा।
कल्पना करें कि दो समबाहु त्रिभुजाकार आकृतियां हों।उनकी भुजाये लचीले संयोजकों से जुड़ी है।उनको बिखंडित कर उसी परिमाप के चार त्रिभुज बना सकेंगे।
शायद आप नहीं क्रिएट कर पाएंगे। चलिए मैं आपको एक हिंट देता हूं। एक प्लेन की बजाय आप थ्री डायमेंशन में सोचिए। जी हां एक प्रिज्म बनाइए।
इसे एक चित्र में समझाया गया है। अगले पृष्ठ पर।
मेरे पिताजी एक प्रबुद्ध किसान थे। सीमित संसाधनों के अंतर्गत किसान के दर्द को मैंने करीब से देखा है।
प्राथमिक शिक्षा काल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई तक मेरी वैज्ञानिक सोच इसी चुनौती के इर्द गिर्द घूमती रही है।
वर्ष 1974 में रुड़की विश्वविद्यालय(आई आई टी रुड़की) मैं इंजीनियरिंग डिग्री की पढ़ाई पूर्ण करते ही मेरा चयन...
भारत जैसे विशाल जनसंख्या,परन्तु सीमित संसाधनों के दृष्टिगत यह चल भी न पायेगा।
हमें नवाचार से भी आगे बढ़ क्रान्तिकारी कदम उठाने ही होंगे।
1+1=2 पढ़ाने से समस्याये हल नहीं होती।
जरा सोचिये,अमरीका की जनसंख्या हमारी चौथाई भी नहीं। परन्तु कृषि क्षेत्र से ले खनिज तक हमसे पांच गुने से भी अधिक। यानि की प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधन 20गुने से भी अधिक।
बौद्धिक संपदा की बात करना भी बेमानी होगी।वैसे भी विषय से बाहर।
अतः हमें 1+1=4 या इससे भी आगे की सोचना ही होगा।
कल्पना करें कि दो समबाहु त्रिभुजाकार आकृतियां हों।उनकी भुजाये लचीले संयोजकों से जुड़ी है।उनको बिखंडित कर उसी परिमाप के चार त्रिभुज बना सकेंगे।
शायद आप नहीं क्रिएट कर पाएंगे। चलिए मैं आपको एक हिंट देता हूं। एक प्लेन की बजाय आप थ्री डायमेंशन में सोचिए। जी हां एक प्रिज्म बनाइए।
इसे एक चित्र में समझाया गया है। अगले पृष्ठ पर।
मेरे पिताजी एक प्रबुद्ध किसान थे। सीमित संसाधनों के अंतर्गत किसान के दर्द को मैंने करीब से देखा है।
प्राथमिक शिक्षा काल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई तक मेरी वैज्ञानिक सोच इसी चुनौती के इर्द गिर्द घूमती रही है।
वर्ष 1974 में रुड़की विश्वविद्यालय(आई आई टी रुड़की) मैं इंजीनियरिंग डिग्री की पढ़ाई पूर्ण करते ही मेरा चयन...