...

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गले लगाने आओगे?
किसी बहाने से ही सही
वो तुम्हारा अधूरा सा गले लगना।
जैसे बस गई है रूह तक
तुम्हारी महक।
जैसे पा लिया हो मैंने,
जीवन का सार।
जैसे कुछ नहीं चाहिए अब
जिंदगी से मुझे।
जैसे भर लिया हो बाहों में,
मैंने सारा आसमान।
तुम डर के लगे गेल हमसे,
मैं तुम्हें गले लगाने में डरता हूं।
तुम नहीं शायद ये जाना पाओगे,
मैं तुमसे प्यार कितना करता हूं।
रोज इश्क तुम्हारा मुझे बचाता है,
वरना रोज ही गम में मरता हूं।
वो अधूरे आलिंगन,
मेरे साथ लिपट के जायेंगे।
क्या कभी वो हसीं लम्हें
वापस पलट के आएंगे।
तुमसे लिपट के मैं
कभी कभी रोना चाहता हूं।
तुमसे तुम्हारी शिकायत करनी है।
क्या तुम खुद को डांट पाओगे।
तुम मुझे बहुत सताते हो,
दिन ओ रात याद आते हो।
मैं बाहें फैला के तुमसे कहता हूं,
क्या मेरे जीवन में आओगे?
मुझे जिंदगी भर के लिए सताने,
मुझे रुलाने, मुझे हसाने,
क्या मुझे गले लगाने आओगे?
© Prashant Dixit