(भाग-2. बार-बार बीमार )
"अब कैसी है तबियत? सिया ने पूछा।
"हूह...ठीक हूं।" मेरी कांपती आवाज ने कहा। कम्बल के अंधेरे में मेरी आँखें खुली थी और नाक से निकलती गर्म सांसे मुझे जला रही थी।
रविवार का दिन था और मैं पूरा बीमार था। पूरी सर्दियों में दो बार मैं पूरा बीमार होता था। और ये इस सर्दि मैं दूसरी बार बीमार हुआ था। वैसे छूट पुट तबियत मेरी हमेशा खराब रहती ही थी।
सिया ने पास आ कर मेरे चेहरे पर से कंबल हटाया और मेरे माथे पर हाथ रखा।
"बुखार पहले से कुछ तो कम हुआ है।" सिया ने कहा।
"कंबल वापस डालो।" मैंने उसकी वैद वाणी सुनने के बाद कहा। "मेरा शरीर इतना क्यों तप रहा है?"
"गर्म दवा और गोलियों के कारण ऐसा है।" सिया ने बताया। "तुम पानी पी लो थोड़ा।"
सिया ने पास मेज पर पड़े जग से गिलास में पानी डाला और फिर मुझे बेड पर ऊंचा खींचते हुए एक हाथ से मेरा सर पकड़ा और दूसरे हाथ से तकिए...