...

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ओह.... ये लम्हे ।
मेरी दो दुनिया है प्रिया।
एक जिसमे जी रहा हूं.......
और एक जिसमे जीना चाहता था।
लोग कहते हैं की मैं अब पहले जैसा
बहुत खूश रहने लगा हूं, और......
और सबकुछ भुल भी चुका हूं।
लेकिन मुझे लगता है की
शायद मेरे चेहरे ने भी धीरे-धीरे मेरी तरह,
दुनिया वालों के मिजाज के साथ
रहना सीख लिया है।
हा! शायद सचमुच अब मैं खूश हूं
लेकिन जीवन के ईस लम्बे सफर में
कभी-कभी जब मैं खामोशी के साथ
अपने रास्ते चलता रहता हूं,
मेरे अधूरे सपनों की दुनिया के
कुछ टूटे हुए पल गिरे हुए दिख जाते हैं।
हां!....हां प्रिया मुझे याद है।
ये लम्हे, ये समय...... और यह तजुरबा,
मेरे जीवन के सारे तजुरबे से अलग होते हैं।
बला की खामोशी जिसमे
मेरी गहरी-गहरी सांसो के साथ
मेरे धडंकते दिल की आवाज़ें
धीमी-धीमी शोर कर रही होती हैं,
घुप अंधेरा जैसे हाथ को हाथ सुझाई न दे।
तुम्हारे साथ बिताए हुए पलों के कुछ टुकड़े,
तो कुछ तुम्हारे किए गए वादों के साथ
तुम्हारे जताए गए प्रेम के शब्दों के टुकड़े
हलकी-फुलकी रौशनी के साथ दिख जाते हैं।
जैसे ज़माने का प्यासा
पानी की तरफ भागता है,
मैं उन दूर से दिख रही बिखरी हुई पड़ी हुई
पलो की तरफ भागता हूं।
हां! प्रिया तब मैं खुश नही रहता,
उदास हो जाता हूं सोचने लगता हूं।
फिर उन्हें उठा कर एक दुसरे से जोड़ने लगता हूं।
लेकिन जोड़ नहीं पाता,
फिर वह मेरे आंसूओं के साथ,
मेरे हाथों से गिर जाते हैं,
खामोशी के साथ वापस अपनी जगह
आकर रूक जाते हैं....... शायद मेरी तरह।
मैं उन्हें देखता रहता हूं...... देखता रहता हूं।
लेकिन उठाता नहीं।
हां! प्रिया मैं आगे बढ़ जाता हूं......
ईस उम्मीद के साथ के वे फिर मिलेंगे।
मैं रो रहा होता हूं,
आंखों से आंसू थम चुके होते हैं,
नज़रे आगे का रास्ता खोज रही होती हैं.....
और दिल के किसी कोने से हल्की-हल्की
एक सरगोशी सूनाई दे रही होती है,
"आशीष ! वफा साथ छोड़ जाती है, यादें नहीं

© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️
@Ashishsingh #Ashishsingh #mysteriouswriter