...

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नारी .... most underrated multitasker
"मुझे बहुत सारे काम निपटाने को हैं। मैं जा रहा हूँ । तुम्हारी बिना मतलब की बातें सुनने का समय नहीं है मेरे पास" , लगभग चिल्लाते हुए पति परमेश्वर दरवाज़ा ज़ोर से उसके मुँह पर बन्द करके निकल गए।
वैसे तो ये हर दूसरे- तीसरे दिन होता ही रहता था और उसको आदत हो चुकी थी ये सब सुनने की, लेकिन पता नहीं क्यों आज ज़्यादा ही चुभ रहे थे उसे ये शब्द।
वह दरवाज़े से हटकर धीरे - धीरे चलकर मेज़ तक पहुँची और कुर्सी खींच कर बैठ गई । पता नहीं क्या चल रहा था उसके दिमाग में...

"नारी का मन एक उलझा हुआ धागा है
लिए फिरती हैं कितनी उलझनें ज़ेहन में
और उलझते उलझते सुलझा भी लेती हैं मन ही मन में....

रात की नींद से पहले
सुबह के नाश्ते का खाका बन जाता है,
नाश्ते का निवाला लेने से पहले परिवार
और दिन भर के काम का मानसिक अवलोकन हो जाता है ...

ये ‘मल्टीटास्किंग’ शब्द तो अभी कुछ वक़्त से सुनने में आया है,
बहुत सारा कार्य निपट जाए कम समय में,
नारी ने तो शायद यह तरीका आदिकाल से अपनाया है ...

कहने की बात तो नहीं ,
जानते हैं सभी न जाने क्यों फ़िर भी
उसकी चिंताओं को फ़ालतू कहा जाता है
उसके सोचने के तरीके को बेवकूफी बताया जाता है
भला नारी से बेहतर कोई प्रबंधक हो सकता है। ???

ये सब सोचते सोचते उसकी आँखें भर आई । किससे कह रही हो तुम यह सब? जब तक दूसरे लोग ये नज़रिया नहीं अपनाते , मैं क्या कर सकती हूँ । ज्ञान देने से ज्यादा शायद आत्मावलोकन की ज़रूरत है सभी को। एक आह भरी उसने ....और साड़ी के पल्लू से अपनी आँखें पोंछी। कुर्सी से अचानक उठ खड़ी हुई और मेज़ पर से जूठे बर्तन समेटने लग गई...

© संवेदना

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