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एहसास अपनेपन का - Part 2
एहसास अपनेपन का - Part 2

एहसासों की चादर ओढ़
रोज़ इल्जाम लगाएं है
उसने करीब होकर भी मुझसे
मेरे किस्से सबको सुनाएं है

मुल्जिम कहूं उसे या खुदको
रोज़ अजमाइश करता है
ज़ख्म देते हुए भी...