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दिसम्बर की क्लास
कॉलेज यूँ तो अगस्त में शुरू हो गया था पर दिसम्बर में जाकर लगा था की मैने कॉलेज मे दाखिला लिया है । उस से पहले लगता भी क्यूँ कॉलेज में कुछ भी कॉलेज जैसा नही लग रहा था क्योकि मै तो सरकारी स्कूल से पढ़ कर आया था और मेरे साथ पढ़ने वाले मेरे दोस्त सब अंग्रेजी स्कूल से वो सब अंग्रेजी में बात करते थे और मेरी तो अंग्रेजी से ऐसी दुश्मनी थी जैसे किसी सास की अपनी बहु से वो सब अंग्रेजी में बात करते थे और मुझे शर्म आती थी उनके बीच रहकर मै उनके बीच में तो रहता था पर उनके साथ नही इसलिए हमने कुछ नया सोचा और खुद को उस भीड़ से हटाकर कर एकांत किया और सबकी नज़र में पढ़ाकू छात्र बन गए या यूँ कहे मैने खुद की इच्छाओ के साथ समझोता करके खुद को सूखे पत्ते की तरह उस हरे पेड़ से गिरा लिया था। दिन यूँ ही बीते और फिर नवम्बर आया और एक नया एडमिशन कॉलेज की भाषा में वो नया एडमिशन हमारी क्लास में और क्लास टीचर ने सबको उस से मिलवाया और उसने अपना परिचय सबको दिया जिस से सबको उस नए एडमिशन का नाम पता चला उसका नाम था स्नेहा । वो बहुत उत्साह से सबकी तरफ देख रही थी या शायद सबके चहरे याद कर रही थी वो और चहरे याद कर पाती तभी क्लास टीचर बोली स्नेहा तुम्हार क्लास की बहुत पढ़ाई छुट गयी है और वो तुम्हे कम्प्लीट करना है उसने अपनी गर्दन को झुका के बोला जी मैम मै पूरा कर लूँगी। इसके बाद लंच हो गया और उसके उस लंच में दोस्त भी बन गए जिन दोस्तों की तलाश में मै अब भी था। लंच खत्म...