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एक गलत फैसला (part 1)
घर में इतनी हलचल मानों भवरों का झुंड इक्कठा हो गया हो। कोई इस ओर से चिल्ला रहा तो कोई उस ओर से। एक कोने में फूलों की टोकरी रखी हुई है तो दूसरे कोने में खाने के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाने की सामाग्री रखी हुई है।
चौखट पर रंगोली और रौशनी करने के लिए बिजली की तैयारी एक साथ की जा रही है।

सब जगह नए मखमली चमकीले पर्दे लगाए जा रहे हैं। घर अब घर नहीं एक दुल्हन का आकार लेने लगा है। इतनी चकाचौंध कि किसी की भी आँखें चौंधिया जाए इसकी खूबसूरती देखकर।

"ये बल्ब तो जल ही नहीं रहे हैं। कैसे काम कर रहे हो आप लोग? एक आदमी भी ढंग का नहीं है।" माथे पर झुर्रियाँ, हाथों में एक लड़ी, होठों में धधकते अंगारे लिए बड़ी तेजी से चलती हुए वो दरवाजे पर जा पहुँचती है।

"ही ही ही!! अभी कर देते हैं ठीक मैम साहब! आप गुस्सा क्यों होती हैं।" मुंँह में पान चबाते हुए एक बिजली वाला बोला।

"हम्म" करके वो ऊपर की ओर जाने लगती है। दीवारों पर लगा नया पैंट और हर कोनों में लगे गुलाब की खुशबू उसको अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

"ये क्या कर रही हो?" आँखों में क्रोध, अधरों पर सवाल, एक हाथ कमर के ऊपर रखते हुए वो सरला के समीप जा कर खड़ी हो गई।

सरला जो कि अपने ही सवालों की दुनिया में इस कदर गुम हो गई थी कि उसको उसका भी होश न रहा। मीठी की इस तीखी-सी आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ और वो हड़बड़ा कर केवल मुस्कुरा गई।

"अरे तू! कमरे में कब आई? मैंने तो देखा ही नहीं तुझे आते हुए।" मुस्कुराते हुए सरला बोली।

"हाँ! देखोगी भी कैसे, अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ तब न कुछ पता चलेगा आपको।" मीठी कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए बोली।

"अच्छा! अच्छा! भूल हो गई मुझसे।" सरला अपनी जगह से उठते हुए बोली।

"सुन! मैं सोच रही थी कि....." सरला अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही मिठी बोल पड़ी कि "देखो! फिर वही राग न अलापना कि लोग क्या कहेंगे। मुझे नहीं मतलब सब क्या कहेंगे और क्या करेंगे।"

"अब तैयार हो जाओ! मुझे भी तैयार होना है फिर। बहुत काम पड़ा है मेरे पास आप और न बढ़ाओ।" कहते हुए उसने रेखा को आवाज़ मारी और सरला को तैयार करने को कह दिया।

© pooja gaur