...

1 views

ऋतुराज बसन्त
बसन्त पंचमी और सरस्वती पूजा एक दूसरे के पर्याय हैं इन्हें पृथक नहीं किया जा सकता

भारत में छः ऋतुएं होती हैं। बसन्त ग्रीष्म, वर्षा,शरद हेमंत और शिशिर (एक बार एलिजाबेथ ने कहा था भारतीय खुशनसीब हैं,कि उनके देश में इतनी ऋतुएं होती हैं और इतने तरह के फूल खिलते हैं। यूरोप में तो बर्फ ही घिरती रहती है

बसन्त को ऋतुओं का राजा माना जाता है। ऋतुराज बसन्त कहा जाता है। बसन्त पंचमी से बसन्त का आगमन होता है बसन्त ऋतु के आगमन के स्वागत में भगवान विष्णु और काम देव की पूजा की जाती है । कामदेव को प्रेम का देवता माना जाता है

इस समय मौसम न ज्यादा गर्म होता है और न ही ज्यादा सर्द होता है अपितु सम होता है। मनुष्य तो मनुष्य पशु पक्षी भी आनन्द विभोर हो जातें हैं। गेहूं की हरी हरी बालियां धरती को हरी साड़ी पहना देती हैं सरसों के पीले फूलों से आच्छादित धरती, स्वर्ण मुकुट धारण किए प्रतीत होती है। रंग बिरंगे फूल उसका श्रृंगार करते हैं प्रकृति अपने यौवन पर मदमस्त होती है लताऐं पेड़ों से लिपट लिपट जाती हैं। बहते हुए झरने मन को मुग्ध कर देते हैं कलकल करती हुई नदियां मन मोह लेती हैं कामदेव मानों हाथों में काम के पांच बाण लिए घूमते हैं। दिल कहता है चल कहीं दूर निकल जाएं, मर्यादा कहती है अच्छा है सम्भल जाएं।

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसन्त पंचमी कहा जाता है।इसे ऋषि पंचमी भी कहते हैं। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा होती है

पुराणों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया किन्तु उस सृष्टि में कोई रस नहीं था कोई उत्साह नहीं था सब कुछ नीरस था। ब्रह्मा जी ने यह समस्या विष्णु जी को बताई, विष्णु जी ने मां दुर्गा जी का आह्वान किया। मां दुर्गा जी के शरीर से श्वेत वर्ण का तेज पुंज उत्पन्न हुआ , देखते देखते यह श्वेत पुंज मनोहारी देवी के रूप में परिवर्तित हो गया ।

इनका वर्ण श्वेत था, श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किए थीं चार भुजाएं थीं जिनमें एक में माला एक में पुस्तक और दो हाथों में वीणा विद्यमान थी।यही मां सरस्वती हैं

मां सरस्वती विद्या बुद्धि एवं ज्ञान की देवी हैं। इन्हें शारदे, भगवती, वीणा वादिनि और वागेश्वरी नामों से पूजा जाता है।यह प्रत्येक कलाकार,लेखक, शिष्य और शिक्षक की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी स्तुति इस प्रकार की गई है

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

अज्ञानता से हमें तारदे माँहे शारदे माँ, हे शारदे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

अज्ञानता से हमें तारदे माँ

हे शारदे माँ..तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे

हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे हम है अकेले, हम है अधूरे

तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

अज्ञानता से हमें तारदे माँमुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी

वेदोंकी भाषा, पुराणों की बानीहम भी तो समझे, हम भी तो जाने

विद्या का हमको अधिकार दे माँहे शारदे माँ, हे शारदे माँ

अज्ञानता से हमें तारदे माँ तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे

हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे मन से हमारे मिटाके अँधेरे,

हमको उजालों का संसार दे माँहे शारदे माँ, हे शारदे माँ

अज्ञानता से हमें तारदे माँहे शारदे माँ, हे शारदे माँ
विद्यार्थियों के लिए तो मां सरस्वती की पूजा विशेष फलदाई होती है

© सरिता अग्रवाल