3 रुपये
आबिद अपने हाथ मे 2 रुपये का सिक्का लिए कब से छुट्टी होने का इंतजार कर रहा था
उसे अपने स्कूल के पास लगने वाली एक छोटी सी टाफियों की दूकान पर जाना था जो एक बूढ़ी औरत ज़मीन पर लगाती थी
आबिद को उसमे संतरे वाली टाफी बहोत ज्यादा पसंद थी
आबिद की अम्मी उसे टिफिन बॉक्स के साथ हमेशा 2 रुपये दिया करती थी और उससे वो संतरे वाली अपनी मनपसंद टाफी ले के खाया करता था
अभी भी वो इसी सोच मे था की छुट्टी हो और वो जाके अपनी मनपसंद टाफी ले ले और रास्ते मे खाते हुए अपने घर जाए
और उसे ये भी फिक्र थी की अभी ज्यादा भीड़ की वजह से उसे जल्दी टाफी नही मिली तो उसे घर जाने मे देर हो जाएगी कियुँकि आबिद पैदल ही घर जाता था और उसका घर स्कूल से काफी दूर था
उसके अब्बू की सैलेरी बहोत कम थी जो घर के खर्च और आबिद की स्कूल की फीस मे चली जाती...
उसे अपने स्कूल के पास लगने वाली एक छोटी सी टाफियों की दूकान पर जाना था जो एक बूढ़ी औरत ज़मीन पर लगाती थी
आबिद को उसमे संतरे वाली टाफी बहोत ज्यादा पसंद थी
आबिद की अम्मी उसे टिफिन बॉक्स के साथ हमेशा 2 रुपये दिया करती थी और उससे वो संतरे वाली अपनी मनपसंद टाफी ले के खाया करता था
अभी भी वो इसी सोच मे था की छुट्टी हो और वो जाके अपनी मनपसंद टाफी ले ले और रास्ते मे खाते हुए अपने घर जाए
और उसे ये भी फिक्र थी की अभी ज्यादा भीड़ की वजह से उसे जल्दी टाफी नही मिली तो उसे घर जाने मे देर हो जाएगी कियुँकि आबिद पैदल ही घर जाता था और उसका घर स्कूल से काफी दूर था
उसके अब्बू की सैलेरी बहोत कम थी जो घर के खर्च और आबिद की स्कूल की फीस मे चली जाती...