अंधे का बेटा अंधा
द्रौपदी के चीर हरण के अनेक कारणों में से एक कारण द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का मजाक उड़ाए जाने को बताया गया है।
महाभारत की कहानी पर आधारित अनगिनत टेलीविज़न सीरियल और फ़िल्में अनगिनत भाषाओँ में बनाई गई हैं और इन सारी कहानियों में द्रौपदी द्वारा दुर्योधन के मजाक उड़ाए जाने को दिखाया गया है।
कहानियों में ये दिखाया जाता है कि जब युद्धिष्ठिर राजसूय यज्ञ करते हैं तो अपने महल में अनगिनत राजाओं को आमंत्रित करते हैं ।
उनके आमंत्रण पर दुर्योधन भी मय द्वारा निर्मित पांडवों के महल को देखने पहुँचता है । मय द्वारा निर्मित पांडवों का वो महल बहुत हीं खुबसूरत था । उसमे बहुमूल्य रत्नों और शीशे का खुबसूरत प्रयोग किया गया था ।
वहाँ पे पर दरवाजों कहीं कहीं इस तरह का बनाया गया था कि दूर से तो खुला प्रतीत होता था , परन्तु वास्तव में वो बंद होता था। कहीं कहीं दरवाजा बंद प्रतीत होता था , परन्तु वो वास्तव में वहां पर दरवाजा होता हीं नहीं था ।
इसी प्रकार फर्श पर कहीं कहीं आभूषणों की इतनी खुबसूरत नक्काशी की गई थी कि जहाँ पानी नहीं था , वहाँ पानी प्रतीत होता था । तो कहीं पर पानी के ऊपर इतनी अच्छी कलाकृति और रंगों का प्रयोग किया गया था कि वहां पानी नहीं अपितु फर्श की प्रतीति होती थी।
आगे की घटनाक्रम ये दिखाया जाता है कि दुर्योधन दृष्टि भ्रम के कारण महल के दीवारों से जा टकराता है तो पानी से भरे हुए तालाब को फर्श समझकर उसमें जा गिरता है और इसी समय द्रौपदी उसका मजाक उड़ाते उसे अंधे का बेटा अँधा कहती है ।
द्रौपदी के चीर हरण के दौरान दुर्योधन और कर्ण के द्वारा द्रौपदी के लिए अपमानजनक शब्दों के प्रयोग के पीछे द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का मजाक उड़ाये जाने को बताया जाता है। ऐसा तर्क दिया दिया जाता है कि दुर्योधन ने द्रौपदी से अपने अपमान का बदला लेने के लिए किया था।
लेकिन यदि हम महाभारत ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं तो कुछ और हीं सत्य दृष्टिगोचित होता दिखाई पड़ता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि महाभारत पर तथाकथित रूप से फिल्म बनाने वाले और टेलीविज़न सीरियल बनाने वाले ये दावा तक कर डालते हैं कि कहानी को प्रस्तुत करने में काफी सारी मेहनत की गई गई है ?
लेकिन क्या वास्तव में उनका दावा वास्तव में महाभारत ग्रन्थ में लिखी गई तथ्यों पर आधारित है , या कि महाभारत ग्रन्थ में लिखी गई तथ्यों के विपरीत है, आईये देखते है । महाभारत ग्रन्थ के अनुसार जो घटनाएँ इस परिप्रेक्ष्य में वर्णित ही गई वो कुछ इस प्रकार हैं ।
इस घटना का जिक्र महाभारत ग्रन्थ के सभा पर्व: के सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः (अर्थात् 47 अध्याय के श्लोक संख्या 1 से श्लोक संख्या 15 में दुर्योधन के दृष्टि भ्रम का शिकार होना और लज्जित होकर हस्तिनापुर वापस लौट जाने की घटना का वर्णन किया गया है ।
इस अध्याय का शीर्षक कुछ इस प्रकार है :दुर्योधन का मय निर्मित सभा भवन को देखना और पग पग पर भ्रम के कारण उपहास का पात्र बनना तथा युधिष्ठिर के वैभव को देखकर उसका चिन्तित होना।
वैशम्पायन उवाच: वसन् दुर्योधनस्तस्यां सभायां पुरुषर्षभ।
शनैर्ददर्श तां सर्वा सभां शकुनिना सह ॥ 1 ॥
वैशम्पायनजी कहते हैं:नरश्रेष्ठ जनमेजय : राजा दुर्योधन ने उस सभा भवन में निवास करते समय शकुनि के साथ धीरे-धीरे उस सारी सभा का निरीक्षण किया ॥ 1 ॥
तस्यां दिव्यानभिप्रायान् ददर्श कुरुनन्दनः |
न दृष्टपूर्वा ये तेन नगरे नागसाहये ॥ 2 ॥
कुरु नन्दन दुर्योधन उस सभा में उन दिव्य अभिप्राय( दृश्यों ) को देखने लगा, जिन्हें उसने हस्तिनापुर में पहले कभी नहीं देखा था ॥ 2 ॥
स कदाचित् सभामध्ये धार्तराष्ट्रो महीपतिः।
स्फाटिकं स्थलमासाद्य जलमित्यभिशङ्कया ॥ 3-4 ॥
एक दिन की बात है, राजा दुर्योधन उस सभा भवन में घूमता हुआ स्फटिक मणिमय स्थल पर जा पहुँचा और वहाँ जल की आशंका से उसने अपना वस्त्र ऊपर उठा लिया। इस प्रकार बुद्धि मोह हो जा नेसे उसका मन उदास हो गया और वह उस स्थान से लौटकर सभा में दूसरी ओर चक्कर लगाने लगा ॥ 3-4 ॥
ततः स्थले निपतितो दुर्मना व्रीडितो नृपः।
निःश्वसन् विमुखश्चापि परिचक्राम तां सभाम् ॥ 5 ॥
तदनन्तर वह स्थल में ही गिर पड़ा, इससे वह मन ही मन दुखी और लज्जित हो गया तथा वहाँ से हटकर लम्बी साँसें लेता हुआ सभा भवन में घूमने लगा ॥ 5 ॥
ततः स्फाटिकतोयां वै स्फाटिकाम्बुजशोभिताम् ।
वापी मत्वा स्थलमिव सवासाः प्रापतजले ॥ 6 ॥
तत्पश्चात स्फटिकमणि के समान स्वच्छ जल से भरी और स्फटिक मणिमय कमलों से सुशोभित बावली को स्थल मानकर वह वस्त्र सहित जल में गिर पड़ा ॥ 6 ॥
जले निपतितं दृष्टा भीमसेनो महाबलः ।
जहास जहसुश्चैव किंकराश्च सुयोधनम् ॥ 7 ॥
उसे जल में गिरा देख महाबली भीमसेन हँसने लगे ॥ 7 ॥
वासांसि च शुभान्यस्मै प्रददू राजशासनात् ।
तथागतं तु तं दृष्ट्वा भीमसेनो महाबलः ॥ 8 ॥
उनके सेवकों ने भी दुर्योधन की हँसी उड़ायी तथा राजाज्ञा से उन्होंने दुर्योधन को सुन्दर वस्त्र दिये ॥ 8 ॥
अर्जुनश्च यमौ चोभी सर्वे ते प्राहसंस्तदा ।
नामर्षयत् ततस्तेषामवहासममर्षणः ॥ 9 ॥
दुर्योधन की यह दुरवस्था देख महाबली भीमसेन, अर्जुन और नकुल सहदेव सभी उस समय जोर जोर से हँसने लगे। दुर्योधन स्वभाव से ही अमर्षशील था, अतः वह उनका उपहास न सह सका ॥ 9 ॥
आकारं रक्षमाणस्तु न स तान् समुदैक्षत,
पुनर्वसनमुत्क्षिप्य प्रतरिष्यन्निव स्थलम् ॥ 10 ॥
वह अपने चेहरे के भाव को छिगये रखने के लिये उनकी ओर दृष्टि नहीं डालता था। फिर स्थल में ही जल का भ्रम हो जाने से वह कपड़े उठाकर इस प्रकार चलने लगा, मानो तैरने की तैयारी कर रहा हो ॥ १० ॥
आरुरोह ततः सर्वे जहसुश्च पुनर्जनाः ।
द्वारं तु पिहिताकारं स्फाटिकं प्रेक्ष्य भूमिपः ।
प्रविशन्नाहतो मूर्ध्नि व्याघूर्णित इव स्थितः ॥ 11 ॥
इस प्रकार जब वह ऊपर चढ़ा, तब सब लोग उसकी भ्रान्ति पर हँसने लगे । उसके बाद राजा दुर्योधन ने एक स्फटिक मणि का बना हुआ दरवाजा देखा, जो वास्तव में बंद था, तो भी खुला दीखता था। उसमें प्रवेश करते ही उसका सिर टकरा गया और उसे चक्कर सा आ गया॥11॥
तादृशं च परं द्वारं स्फाटिकोरुकपाटकम् ।
विघट्टयन कराभ्यां तु निष्क्रम्याग्रे पपात ह ॥ 12 ॥
ठीक उसी तरह का एक दूसरा दरवाजा मिला, जिसमें स्फटिक मणि के बड़े बड़े किंवाड़ लगे थे । यद्यपि वह खुला था, तो भी दुर्योधन ने उसे बंद समझकर उस पर दोनों हाथों से धक्का देना चाहा। किंतु धक्के से वह स्वयं द्वार के बाहर निकलकर गिर पड़ा ॥ 12 ॥
द्वारं तु वितताकारं समापेदे पुनश्च सः ।
तद्वत्तं चेति मन्वानो द्वारस्थाना दुपारमत् ॥ 13 ॥
आगे जाने पर उसे एक बहुत बड़ा फाटक और मिला, परंतु कहीं पिछले दरवाजों की भाँति यहाँ भी कोई अप्रिय घटना न घटित हो इस भय से वह उस दरवाजे के इधर से ही लौट आया ॥ १३ ॥
एवं प्रलम्भान् विविधान प्राप्य तत्र विशाम्पते ।
पाण्डवेयाभ्यनुज्ञातस्ततो अप्रहृऐन मनसा दुर्योधनो नृपः ॥ 14 ॥
राजसूये महाकतौ प्रेक्ष्य तामद्भुतामृद्धिं जगाम गजसाह्वयम् ॥ 15॥
राजन, इस प्रकार बार बार धोखा खाकर राजा दुर्योधन राजसूय महायज्ञ में पाण्डवों के पास आयी हुई अद्भुत समृद्धि पर दृष्टि डालकर पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर की आज्ञा ले अप्रसन्न मन से हस्तिनापुर को चला गया ॥ 14-15 ॥
इस प्रकार हम देखते हैं कि दुर्योधन के दृष्टि भ्रम का शिकार होने पर दुर्योधन का मजाक न केवल भीम हीं उड़ाते हैं, बल्कि उनके साथ साथ अर्जुन, नकुल और सहदेव भी दुर्योधन पर हंसते है ।
सबसे अपमान जनक बात तो ये थी कि भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ साथ इन पांडवों के सेवक भी दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर उसपर हंसने लगते है।
द्रौपदी का दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर उसपर हंसना तथा उसको अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक उड़ाने का जिक्र कहीं भी नहीं आता है। ये कहानी बिल्कुल कोरी कल्पित है तथा इसका सत्य से कोई लेना नहीं है ।
तो फिर सवाल ये उठता है कि इस असत्य घटना को फैलाया किसने? यदि द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक नहीं उड़ाया था, तो फिर इस बात को बताया किसने? इस असत्य और झूठी बात को फैलाया किसने?
इसका उत्तर शायद द्रौपदी के चीरहरण की घटना में छिपा हुआ है। ये सर्व ज्ञात है कि कर्ण ने द्रौपदी के चीरहरण की घटना के समय द्रौपदी को वैश्या कहकर संबोधित किया था और दुर्योधन ने उस अबला को निर्वस्त्र कर देने का आदेश दिया था।
कर्ण की दुश्मनी तो अर्जुन से थी, फिर उसने द्रौपदी के लिए इस तरह के अपमानजनक शब्दों का प्रयोग क्यों किया? दुर्योधन की घृणा पांडवों से थी तो फिर द्रौपदी के लिए इस तरह का अपमान जनक व्यवहार क्यों?
शायद दुर्योधन और कर्ण के इन निकृष्ट कदमों को उचित ठहराने के लिए ये मिथ्या फैलाई गई हो। जबकि ध्यान से देखा जाए तो पांडव , कौरव और कर्ण सारे के सारे पुरुषवादी प्रवृत्ति के शिकार हैं।
जहां पांडव द्रौपदी को एक वस्तु समझकर आपस में बांट लेते हैं, तो भीष्म पितामह अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण एक वस्तु की तरह कर लेते हैं।
वहीं पर दुर्योधन अपने मित्र कर्ण की सहायता से भानुमति का अपहरण कर लेता है, तो कृष्ण के पुत्र सांब दुर्योधन की बेटी का अपहरण कर लेते है।
पूरे महाभारत में स्त्री का उपयोग मात्र संतानोत्पत्ति के लिए किया जाता रहा है। धृत्तराष्ट्र, पांडु, विदुर, और पांचों पांडवों का जन्म इसी बात को तो साबित करता है।
शायद इसी पुरुषवादी प्रवृत्ति के शिकार महाभारत के ये दोनों पात्र दुर्योधन और कर्ण द्रौपदी के लिए इतना अपमानजनक व्यवहार मात्र उसे वस्तु की तरह समझकर हीं करते हैं।
और शायद पांडव भी द्रौपदी को जुए में हारे हुए एक वस्तु की तरह हीं समझकर दुर्योधन के इस कदम का विरोध नही करते। अगर पांडव द्रौपदी न समझकर एक पत्नी की तरह का व्यवहार करते तो यूं चुपचाप नहीं बैठते।
जहां पर द्रौपदी का सरेआम भरी सभा में अपमान किया जा रहा था वहां पर भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र आदि सारे बैठे हुए थे, लेकिन किसी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?कारण स्पष्ट है, उन सबके लिए द्रौपदी जुए में हारी गई एक वस्तु अलावा कुछ भी नहीं थी।
महाभारत में वर्णित इन घटनाओं से ये साफ जाहिर हो जाता है कि पुरुषवादी प्रवृत्ति ने हीं द्रौपदी के बारे में इस भ्रम को फैलाया था कि द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक उड़ाया था, जबकि वास्तविकता तो ये है कि द्रौपदी ने ऐसा कभी नहीं कहा था।
वास्तविकता तो ये है कि दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर द्रौपदी ने नहीं, अपितु भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और उनके सहचरों ने दुर्योधन का मजाक उड़ाया था।
आश्चर्य की बात तो ये है कि इस झूठी बात को अबतक सत्य मानकर फैलाया जाता रहा और द्रौपदी पर झूठे आरोप लगाए जाते रहे। क्या द्रौपदी का चीरहरण काफी नहीं था उस पात्र को व्यथित करने के लिए कि उसपर इस तरह के झूठे आरोप लगाए गए?
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
महाभारत की कहानी पर आधारित अनगिनत टेलीविज़न सीरियल और फ़िल्में अनगिनत भाषाओँ में बनाई गई हैं और इन सारी कहानियों में द्रौपदी द्वारा दुर्योधन के मजाक उड़ाए जाने को दिखाया गया है।
कहानियों में ये दिखाया जाता है कि जब युद्धिष्ठिर राजसूय यज्ञ करते हैं तो अपने महल में अनगिनत राजाओं को आमंत्रित करते हैं ।
उनके आमंत्रण पर दुर्योधन भी मय द्वारा निर्मित पांडवों के महल को देखने पहुँचता है । मय द्वारा निर्मित पांडवों का वो महल बहुत हीं खुबसूरत था । उसमे बहुमूल्य रत्नों और शीशे का खुबसूरत प्रयोग किया गया था ।
वहाँ पे पर दरवाजों कहीं कहीं इस तरह का बनाया गया था कि दूर से तो खुला प्रतीत होता था , परन्तु वास्तव में वो बंद होता था। कहीं कहीं दरवाजा बंद प्रतीत होता था , परन्तु वो वास्तव में वहां पर दरवाजा होता हीं नहीं था ।
इसी प्रकार फर्श पर कहीं कहीं आभूषणों की इतनी खुबसूरत नक्काशी की गई थी कि जहाँ पानी नहीं था , वहाँ पानी प्रतीत होता था । तो कहीं पर पानी के ऊपर इतनी अच्छी कलाकृति और रंगों का प्रयोग किया गया था कि वहां पानी नहीं अपितु फर्श की प्रतीति होती थी।
आगे की घटनाक्रम ये दिखाया जाता है कि दुर्योधन दृष्टि भ्रम के कारण महल के दीवारों से जा टकराता है तो पानी से भरे हुए तालाब को फर्श समझकर उसमें जा गिरता है और इसी समय द्रौपदी उसका मजाक उड़ाते उसे अंधे का बेटा अँधा कहती है ।
द्रौपदी के चीर हरण के दौरान दुर्योधन और कर्ण के द्वारा द्रौपदी के लिए अपमानजनक शब्दों के प्रयोग के पीछे द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का मजाक उड़ाये जाने को बताया जाता है। ऐसा तर्क दिया दिया जाता है कि दुर्योधन ने द्रौपदी से अपने अपमान का बदला लेने के लिए किया था।
लेकिन यदि हम महाभारत ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं तो कुछ और हीं सत्य दृष्टिगोचित होता दिखाई पड़ता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि महाभारत पर तथाकथित रूप से फिल्म बनाने वाले और टेलीविज़न सीरियल बनाने वाले ये दावा तक कर डालते हैं कि कहानी को प्रस्तुत करने में काफी सारी मेहनत की गई गई है ?
लेकिन क्या वास्तव में उनका दावा वास्तव में महाभारत ग्रन्थ में लिखी गई तथ्यों पर आधारित है , या कि महाभारत ग्रन्थ में लिखी गई तथ्यों के विपरीत है, आईये देखते है । महाभारत ग्रन्थ के अनुसार जो घटनाएँ इस परिप्रेक्ष्य में वर्णित ही गई वो कुछ इस प्रकार हैं ।
इस घटना का जिक्र महाभारत ग्रन्थ के सभा पर्व: के सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः (अर्थात् 47 अध्याय के श्लोक संख्या 1 से श्लोक संख्या 15 में दुर्योधन के दृष्टि भ्रम का शिकार होना और लज्जित होकर हस्तिनापुर वापस लौट जाने की घटना का वर्णन किया गया है ।
इस अध्याय का शीर्षक कुछ इस प्रकार है :दुर्योधन का मय निर्मित सभा भवन को देखना और पग पग पर भ्रम के कारण उपहास का पात्र बनना तथा युधिष्ठिर के वैभव को देखकर उसका चिन्तित होना।
वैशम्पायन उवाच: वसन् दुर्योधनस्तस्यां सभायां पुरुषर्षभ।
शनैर्ददर्श तां सर्वा सभां शकुनिना सह ॥ 1 ॥
वैशम्पायनजी कहते हैं:नरश्रेष्ठ जनमेजय : राजा दुर्योधन ने उस सभा भवन में निवास करते समय शकुनि के साथ धीरे-धीरे उस सारी सभा का निरीक्षण किया ॥ 1 ॥
तस्यां दिव्यानभिप्रायान् ददर्श कुरुनन्दनः |
न दृष्टपूर्वा ये तेन नगरे नागसाहये ॥ 2 ॥
कुरु नन्दन दुर्योधन उस सभा में उन दिव्य अभिप्राय( दृश्यों ) को देखने लगा, जिन्हें उसने हस्तिनापुर में पहले कभी नहीं देखा था ॥ 2 ॥
स कदाचित् सभामध्ये धार्तराष्ट्रो महीपतिः।
स्फाटिकं स्थलमासाद्य जलमित्यभिशङ्कया ॥ 3-4 ॥
एक दिन की बात है, राजा दुर्योधन उस सभा भवन में घूमता हुआ स्फटिक मणिमय स्थल पर जा पहुँचा और वहाँ जल की आशंका से उसने अपना वस्त्र ऊपर उठा लिया। इस प्रकार बुद्धि मोह हो जा नेसे उसका मन उदास हो गया और वह उस स्थान से लौटकर सभा में दूसरी ओर चक्कर लगाने लगा ॥ 3-4 ॥
ततः स्थले निपतितो दुर्मना व्रीडितो नृपः।
निःश्वसन् विमुखश्चापि परिचक्राम तां सभाम् ॥ 5 ॥
तदनन्तर वह स्थल में ही गिर पड़ा, इससे वह मन ही मन दुखी और लज्जित हो गया तथा वहाँ से हटकर लम्बी साँसें लेता हुआ सभा भवन में घूमने लगा ॥ 5 ॥
ततः स्फाटिकतोयां वै स्फाटिकाम्बुजशोभिताम् ।
वापी मत्वा स्थलमिव सवासाः प्रापतजले ॥ 6 ॥
तत्पश्चात स्फटिकमणि के समान स्वच्छ जल से भरी और स्फटिक मणिमय कमलों से सुशोभित बावली को स्थल मानकर वह वस्त्र सहित जल में गिर पड़ा ॥ 6 ॥
जले निपतितं दृष्टा भीमसेनो महाबलः ।
जहास जहसुश्चैव किंकराश्च सुयोधनम् ॥ 7 ॥
उसे जल में गिरा देख महाबली भीमसेन हँसने लगे ॥ 7 ॥
वासांसि च शुभान्यस्मै प्रददू राजशासनात् ।
तथागतं तु तं दृष्ट्वा भीमसेनो महाबलः ॥ 8 ॥
उनके सेवकों ने भी दुर्योधन की हँसी उड़ायी तथा राजाज्ञा से उन्होंने दुर्योधन को सुन्दर वस्त्र दिये ॥ 8 ॥
अर्जुनश्च यमौ चोभी सर्वे ते प्राहसंस्तदा ।
नामर्षयत् ततस्तेषामवहासममर्षणः ॥ 9 ॥
दुर्योधन की यह दुरवस्था देख महाबली भीमसेन, अर्जुन और नकुल सहदेव सभी उस समय जोर जोर से हँसने लगे। दुर्योधन स्वभाव से ही अमर्षशील था, अतः वह उनका उपहास न सह सका ॥ 9 ॥
आकारं रक्षमाणस्तु न स तान् समुदैक्षत,
पुनर्वसनमुत्क्षिप्य प्रतरिष्यन्निव स्थलम् ॥ 10 ॥
वह अपने चेहरे के भाव को छिगये रखने के लिये उनकी ओर दृष्टि नहीं डालता था। फिर स्थल में ही जल का भ्रम हो जाने से वह कपड़े उठाकर इस प्रकार चलने लगा, मानो तैरने की तैयारी कर रहा हो ॥ १० ॥
आरुरोह ततः सर्वे जहसुश्च पुनर्जनाः ।
द्वारं तु पिहिताकारं स्फाटिकं प्रेक्ष्य भूमिपः ।
प्रविशन्नाहतो मूर्ध्नि व्याघूर्णित इव स्थितः ॥ 11 ॥
इस प्रकार जब वह ऊपर चढ़ा, तब सब लोग उसकी भ्रान्ति पर हँसने लगे । उसके बाद राजा दुर्योधन ने एक स्फटिक मणि का बना हुआ दरवाजा देखा, जो वास्तव में बंद था, तो भी खुला दीखता था। उसमें प्रवेश करते ही उसका सिर टकरा गया और उसे चक्कर सा आ गया॥11॥
तादृशं च परं द्वारं स्फाटिकोरुकपाटकम् ।
विघट्टयन कराभ्यां तु निष्क्रम्याग्रे पपात ह ॥ 12 ॥
ठीक उसी तरह का एक दूसरा दरवाजा मिला, जिसमें स्फटिक मणि के बड़े बड़े किंवाड़ लगे थे । यद्यपि वह खुला था, तो भी दुर्योधन ने उसे बंद समझकर उस पर दोनों हाथों से धक्का देना चाहा। किंतु धक्के से वह स्वयं द्वार के बाहर निकलकर गिर पड़ा ॥ 12 ॥
द्वारं तु वितताकारं समापेदे पुनश्च सः ।
तद्वत्तं चेति मन्वानो द्वारस्थाना दुपारमत् ॥ 13 ॥
आगे जाने पर उसे एक बहुत बड़ा फाटक और मिला, परंतु कहीं पिछले दरवाजों की भाँति यहाँ भी कोई अप्रिय घटना न घटित हो इस भय से वह उस दरवाजे के इधर से ही लौट आया ॥ १३ ॥
एवं प्रलम्भान् विविधान प्राप्य तत्र विशाम्पते ।
पाण्डवेयाभ्यनुज्ञातस्ततो अप्रहृऐन मनसा दुर्योधनो नृपः ॥ 14 ॥
राजसूये महाकतौ प्रेक्ष्य तामद्भुतामृद्धिं जगाम गजसाह्वयम् ॥ 15॥
राजन, इस प्रकार बार बार धोखा खाकर राजा दुर्योधन राजसूय महायज्ञ में पाण्डवों के पास आयी हुई अद्भुत समृद्धि पर दृष्टि डालकर पाण्डु नन्दन युधिष्ठिर की आज्ञा ले अप्रसन्न मन से हस्तिनापुर को चला गया ॥ 14-15 ॥
इस प्रकार हम देखते हैं कि दुर्योधन के दृष्टि भ्रम का शिकार होने पर दुर्योधन का मजाक न केवल भीम हीं उड़ाते हैं, बल्कि उनके साथ साथ अर्जुन, नकुल और सहदेव भी दुर्योधन पर हंसते है ।
सबसे अपमान जनक बात तो ये थी कि भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ साथ इन पांडवों के सेवक भी दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर उसपर हंसने लगते है।
द्रौपदी का दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर उसपर हंसना तथा उसको अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक उड़ाने का जिक्र कहीं भी नहीं आता है। ये कहानी बिल्कुल कोरी कल्पित है तथा इसका सत्य से कोई लेना नहीं है ।
तो फिर सवाल ये उठता है कि इस असत्य घटना को फैलाया किसने? यदि द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक नहीं उड़ाया था, तो फिर इस बात को बताया किसने? इस असत्य और झूठी बात को फैलाया किसने?
इसका उत्तर शायद द्रौपदी के चीरहरण की घटना में छिपा हुआ है। ये सर्व ज्ञात है कि कर्ण ने द्रौपदी के चीरहरण की घटना के समय द्रौपदी को वैश्या कहकर संबोधित किया था और दुर्योधन ने उस अबला को निर्वस्त्र कर देने का आदेश दिया था।
कर्ण की दुश्मनी तो अर्जुन से थी, फिर उसने द्रौपदी के लिए इस तरह के अपमानजनक शब्दों का प्रयोग क्यों किया? दुर्योधन की घृणा पांडवों से थी तो फिर द्रौपदी के लिए इस तरह का अपमान जनक व्यवहार क्यों?
शायद दुर्योधन और कर्ण के इन निकृष्ट कदमों को उचित ठहराने के लिए ये मिथ्या फैलाई गई हो। जबकि ध्यान से देखा जाए तो पांडव , कौरव और कर्ण सारे के सारे पुरुषवादी प्रवृत्ति के शिकार हैं।
जहां पांडव द्रौपदी को एक वस्तु समझकर आपस में बांट लेते हैं, तो भीष्म पितामह अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण एक वस्तु की तरह कर लेते हैं।
वहीं पर दुर्योधन अपने मित्र कर्ण की सहायता से भानुमति का अपहरण कर लेता है, तो कृष्ण के पुत्र सांब दुर्योधन की बेटी का अपहरण कर लेते है।
पूरे महाभारत में स्त्री का उपयोग मात्र संतानोत्पत्ति के लिए किया जाता रहा है। धृत्तराष्ट्र, पांडु, विदुर, और पांचों पांडवों का जन्म इसी बात को तो साबित करता है।
शायद इसी पुरुषवादी प्रवृत्ति के शिकार महाभारत के ये दोनों पात्र दुर्योधन और कर्ण द्रौपदी के लिए इतना अपमानजनक व्यवहार मात्र उसे वस्तु की तरह समझकर हीं करते हैं।
और शायद पांडव भी द्रौपदी को जुए में हारे हुए एक वस्तु की तरह हीं समझकर दुर्योधन के इस कदम का विरोध नही करते। अगर पांडव द्रौपदी न समझकर एक पत्नी की तरह का व्यवहार करते तो यूं चुपचाप नहीं बैठते।
जहां पर द्रौपदी का सरेआम भरी सभा में अपमान किया जा रहा था वहां पर भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र आदि सारे बैठे हुए थे, लेकिन किसी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?कारण स्पष्ट है, उन सबके लिए द्रौपदी जुए में हारी गई एक वस्तु अलावा कुछ भी नहीं थी।
महाभारत में वर्णित इन घटनाओं से ये साफ जाहिर हो जाता है कि पुरुषवादी प्रवृत्ति ने हीं द्रौपदी के बारे में इस भ्रम को फैलाया था कि द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का बेटा अंधा कहकर मजाक उड़ाया था, जबकि वास्तविकता तो ये है कि द्रौपदी ने ऐसा कभी नहीं कहा था।
वास्तविकता तो ये है कि दुर्योधन को पानी में गिरा हुआ देखकर द्रौपदी ने नहीं, अपितु भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और उनके सहचरों ने दुर्योधन का मजाक उड़ाया था।
आश्चर्य की बात तो ये है कि इस झूठी बात को अबतक सत्य मानकर फैलाया जाता रहा और द्रौपदी पर झूठे आरोप लगाए जाते रहे। क्या द्रौपदी का चीरहरण काफी नहीं था उस पात्र को व्यथित करने के लिए कि उसपर इस तरह के झूठे आरोप लगाए गए?
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित