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पछतावा

मुझे छिंदवाड़ा जाना था। मैंने पहले दिन 1बजे की बस में सीट बुक करा ली थी। वहाँ पहुँचकर बस के पास बड़ी देर खड़े रहे। बाद में पता लगा कि 1 बजे की बस कैंसिल हो चुकी है। दूसरी बस 3.30 बजे जाने वाली थी। मुझे जल्दी पहुँचना था। उससे बहस हुई। मैंने पैसे वापिस लिए और 1.30 वाली दूसरी बस पर बैठ गई। बस चल पड़ी मैं मन ही मन पुराने बस वाले को कोसती रही और खुद को धन्य समझ रही थी। खैर लखनादौन से आगे बस खराब हो गई और रुक गई। ड्राइवर ने कहा यह बस आगे नहीं जाएगी खराब हो गई है। आप सब को दूसरी बस से भेजेंगे। कुछ ही देर के बाद दूसरी बस दिखाई दी। उसे रोका और हमें बिठा दिया। बस भरी हुई थी। मुझे ड्राइवर के पास बैठने का स्थान मिला। थोड़ी दूर जाने पर ड्राइवर ने मुझे देखा और कहने लगा मैडम बस स्टेण्ड पर हमारे ऊपर नाराज़ हो रहीं थीं कि 'मुझे जल्दी पहुँचना है। आपने धोखा दिया आपको ऐसा नहीं करना चाहिए मैं दूसरी बस से जल्दी पहुँच जाऊँगी।,
अब क्या हो गया। हँसकर कहने लगा मैडम को उतार दो जल्दी पहुँच जाएगी।
मुझे बड़ी ग्लानि हो रही रही थी।

वैष्णो खत्री ' वेदिका '