नवरात्रि: नवदुर्गा: मां का आठवां रु
नवरात्रि के आठवें दिन या अष्टमी को मां के महागौरी रूप के पूजा का विधान है।
अपने पिता प्रजापति राजा दक्ष के यहां यज्ञ में अपने पति शंकर का अपमान होते देख सति उसी यज्ञकुंड में योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लेती हैं तत्पश्चात् वह पर्वतों के राजा हिमवान के घर
पार्वती के रुप में जन्म लेती हैं। इस जनम में भी वे शंकर जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करतीं हैं। एक बार शंकर भगवान पार्वती जी को कुछ ऐसा कह देते हैं जो पार्वती जी के दिल को दुखा जाता है
इसी दुखी मन से वे तपस्या करने चली जाती हैं। वर्षों तक कठोर तपस्या करती हैं।अनेक वर्ष बीत जाने पर भी जब पार्वती जी वापस नहीं लौटतीं तो शंकर भोले
उन्हें ढूंढने निकलते हैं, अंततः वे वहां पहुंचते हैं
जहां पार्वती जी तपस्या में लीन होतीं हैं।वे
पार्वती जी को देखते हैं तो देखते ही रह जातें हैं
पार्वती जी का मुख अत्यंत ओज
पूर्ण होता है उनके चारों ओर एक आभा मंडल
प्रतीत होता है।उनकी छटा चांदनी के समान धवल ओर कुंद के फूल के समान श्वेत दिखाई
देती है, उनके इस रुप से प्रसन्न होकर शंकर जी देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
तभी से ये महागौरी रूप में पूजी जाती हैं, इनकी उपासना से असंभव कार्य भी
सम्भव हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से
मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मां महागौरी की चार भुजाएं हैं
इनकी दांयी भुजा अभय मुद्रा में है, नीचे वाली भुजा में त्रिशूल धारण किए हैं। बायीं भुजा में डमरू बाज रहा है। नीचे वाली भुजा से भक्तों
को वरदान देती हैं।
मां महागौरी की पूजा में गुलाबी या
मोर पंख वाले हरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। इनकी पूजा में बेला और मोगरा के पुष्प अर्पित करने चाहिए। मां महागौरी को प्रसन्न करने के लिए नारियल का भोग अर्पित
करना चाहिए। मां महागौरी राहू को नियंत्रित
करतीं हैं इनकी उपासना करने से राहू से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं।
जय माता दी
© सरिता अग्रवाल
अपने पिता प्रजापति राजा दक्ष के यहां यज्ञ में अपने पति शंकर का अपमान होते देख सति उसी यज्ञकुंड में योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लेती हैं तत्पश्चात् वह पर्वतों के राजा हिमवान के घर
पार्वती के रुप में जन्म लेती हैं। इस जनम में भी वे शंकर जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करतीं हैं। एक बार शंकर भगवान पार्वती जी को कुछ ऐसा कह देते हैं जो पार्वती जी के दिल को दुखा जाता है
इसी दुखी मन से वे तपस्या करने चली जाती हैं। वर्षों तक कठोर तपस्या करती हैं।अनेक वर्ष बीत जाने पर भी जब पार्वती जी वापस नहीं लौटतीं तो शंकर भोले
उन्हें ढूंढने निकलते हैं, अंततः वे वहां पहुंचते हैं
जहां पार्वती जी तपस्या में लीन होतीं हैं।वे
पार्वती जी को देखते हैं तो देखते ही रह जातें हैं
पार्वती जी का मुख अत्यंत ओज
पूर्ण होता है उनके चारों ओर एक आभा मंडल
प्रतीत होता है।उनकी छटा चांदनी के समान धवल ओर कुंद के फूल के समान श्वेत दिखाई
देती है, उनके इस रुप से प्रसन्न होकर शंकर जी देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
तभी से ये महागौरी रूप में पूजी जाती हैं, इनकी उपासना से असंभव कार्य भी
सम्भव हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से
मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मां महागौरी की चार भुजाएं हैं
इनकी दांयी भुजा अभय मुद्रा में है, नीचे वाली भुजा में त्रिशूल धारण किए हैं। बायीं भुजा में डमरू बाज रहा है। नीचे वाली भुजा से भक्तों
को वरदान देती हैं।
मां महागौरी की पूजा में गुलाबी या
मोर पंख वाले हरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। इनकी पूजा में बेला और मोगरा के पुष्प अर्पित करने चाहिए। मां महागौरी को प्रसन्न करने के लिए नारियल का भोग अर्पित
करना चाहिए। मां महागौरी राहू को नियंत्रित
करतीं हैं इनकी उपासना करने से राहू से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं।
जय माता दी
© सरिता अग्रवाल