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"अधूरी चित्रकारी" (The incomplete painting) part-२
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि आर्कियोलोजिस्ट समीर को सत्येंद्र सर ने इस बार एक ऐसी पेन्टिंग को थमा दिया था जिस पर इन कम्पलीट का टैग लगा था काफी माथा पच्ची करने के बाद भी समीर को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था,घर लाने के बाद भी उसनें तस्वीर को काफी देर तक देखा मगर वो उस स्त्री के उदास चेहरे का सबब भी नहीं जान सका और रात को खाना खाकर सो गया।
रात को अचानक समीर को ऐसा लगा जैसे उसे कोई बुला रहा है समीर ने आंखें खोली तो उसनें अपने सामने उसी स्त्री को देखा वो उसके सामने ही पलंग पर बैठी थी और एक टक उसे ही देख रही थी समीर को ऐसा लगा जैसे वो उसकी आंखों में खो जायेगा,तभी उस स्त्री ने ही खामोशी तोड़ी और बोलीं तुम मेरी उदासी का कारण जानना चाहते थे न! तो आज मै तुम्हें अपनी सारी परेशानी बताती हूँ मेरा नाम अनिमा है मैं कभी अपने जीवन में बहुत खुश थी कि तभी मेरे पिताजी ने मेरा विवाह वहाँ के बड़े जमीदार के साथ तय कर दिया,कुछ दिनों बाद मैं ब्याह कर अपने जमीदार पति के घर आ गई,यूँ मेरे पति बेहद धनवान थे और उस घर में मुझे किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी,मगर एक चीज़ में मै बेहद अधूरी थी वो था पति का प्रेम उनके पास जैसे मेरे लिए कभी कोई समय ही नहीं होता था हर वक़्त वो शिकार,घूमने फिरने और कोठे में वक्त बिताने लगे थे कभी अगर मुझ पर उन्हें प्रेम आ भी जाता तो केवल वो देय की ही क्षुदा होती अपनी इप्सा पूरी कर वो मुंह फेरकर सो जाते और दिन भर फिर खुद में ही व्यस्त रहते कई बार तो वो कई कई दिनों तक घर भी नहीं आते मै अकेली ही अपना जीवन व्यतीत करती जा रही थी।
अच्छा अब चलतीं हूँ कल फिर आऊंगी, तभी समीर की आंख खुल गई वो सोचने लगा.... जो उसनें देखा था वो ख्वाब था या सच क्या सच में इस स्त्री के साथ ऐसा ही हुआ था? ऐसे ही हजारों प्रश्न समीर के मन में उमड़ रहें थे दिन भर समीर अपने ही कामों में व्यस्त रहा और फिर रात को जब उसकी आँख लगीं तो कुछ ही देर में उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पास ही बैठा हुआ है उसनें आंखे खोली तो वही स्त्री थी समीर को देखते ही वो मुस्कुरा दी और धीरे से बोली"मेरे बारे में ही सोच रहे थे न समीर खामोश बस उसे देखता रहा और मन ही मन सोचता रहा कितनी सुदंर है ये स्त्री कोई पागल ही होगा जो इसको न प्यार करें ।
उस स्त्री ने बोलना शुरू किया अपने ऊबाऊ जीवन को बदलने के लिए मै चित्रकारी करने लगी मुझे शुरू से ही चित्रकला में बेहद रूचि थी एक दिन मेरे पति के एक मित्र ने मेरे चित्र देखें तो बेहद प्रभावित हुए फिर उन्होंने कहाँ कि वो खुद भी बेहद उम्दा चित्र बनाते है,मैने उनसे और बेहतर चित्र बनाने की हुनर सिखाने को कहाँ तो वो मान गए, और अब वो रोज ही घर आने लगे उनका नाम रंजन था।
धीरे धीरे मै उनके प्रति आकषिर्त होने लगी और शायद वो भी मुझ पर आकषिर्त होने लगे कब हम एक दूसरे से प्रेम करने लगे हमे पता ही नहीं चला न जाने कैसे मेरे पति को इसका पता चल गया और एक दिन उन्होंने रात के खाने पर रंजन को बुलाया और मुझसे बोले जिस रंजन को तुम इतना पसंद करतीं हो आज उसी के हाथों तुम्हारा चित्र बनवाऊँगा और उसके बाद तुम दोनों को मार दूंगा मै कांप उठीं वो कुटिल हंसी हंसते हुए बोले अगर तुमनें रंजन को कुछ भी बताने की कोशिश की तो रंजन को तुम्हारे सामने ही तड़पा तड़पा कर मारूंगा वरना एक साथ दोनों को केवल गोली मार दूंगा।
मैं खामोश हो गई अब कहने को कुछ बचा ही नहीं था रंजन आये और इन्होंने खूब लजीज़ पकवानों से उनका स्वागत किया जब खाना हो गया तब इन्होंने रंजन से कहा भ्ई सुना है तुम बहुत अच्छा चित्र बनाते हो जरा मेरी सुदंर पत्नी का भी एक चित्र बनाओं रंजन मान गए और कुछ ही देर में वो मेरा चित्र बनाने में तल्लीन हो गयें और मै पाषाण सी मूक उन्हें चित्र बनाते देखती रही,तभी मेरे पति का अट्टहास पूरे कमरे में गूंज उठा और वो बोले रंजन चित्र के कोने में लिख दो द इन कम्पलीट पेन्टिंग,रंजन आश्चर्य से बोले ऐसा क्यों तभी मेरे पति ने रंजन पर गोली दागते हुए कहा क्योकि इसे कभी भी तुम्हारा प्रेम हासिल नहीं होगा और न अब ये जीवित रहेगी और ये कहकर उन्होंने मेरी भी इहलीला समाप्त कर दी........ कुछ देर शांत रहकर वो बोली तुम्हारा मन बेहद साफ है इसलिए अपना दर्द जो सालों से मै खुद में ही समेटकर भटक रही हूँ आज तुम्हें सुना कर मुझे मुक्ति मिल गई है..... और कुछ ही देर में समीर की आंखें खुल गई ।
लगभग एक हफ्ते बाद उसने सत्येंद्र सर को बताया कि इस पेन्टिंग का रहस्य वो नहीं सुलझा सकता, सच्चाई तो उसे पता चल चुकी थी मगर उसकी बात का यकीन करता भी तो कौन जब वो खुद नही जानता था कि जो कुछ उसनें देखा था वो महज़ ख्वाब था या एक भटकती रूह की दर्द भरी दास्ताँ.... (समाप्त)

@Deep4318--- Time10:12
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