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महिला दिवस- "एक नजर में "
आज इंटरनेशनल वुमन डे पर हमने अपने अलग अलग वर्ग के मित्रों से उनकी महिला दिवस के बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही।
पेश हैं इस पर उनके विचार :
हमने सबसे पहले अपने मित्र संजीव से,जो पेशे से डाक्टर हैं, पूछा,: आज इंटरनेशनल वुमन डे है ,आप ने इसमें क्या योगदान दिया है?
उन्होंने कहा,कि हम तो रोज ही इसमें योगदान दिया करते हैं। हमारा पेशा ही मानवता की सेवा को समर्पित है। क्या स्त्री और क्या पुरुष ,
हम रोज ही पीड़ित व्यक्ति को उसका उपचार कर उसको राहत पहुंचाने का काम करते हैं।
महिलाओं के साथ कोई कोई दुर्व्यवहार न हो, इसके लिए स्थान स्थान पर सी.सी.टी. वी. कैमरे लगाए गए हैं।और दोषी पर उचित कार्रवाई की जाती है।इस प्रकार हम तो एक दिन नहीं, बल्कि पूरे वर्ष वुमन डे मनाते हैं।
सुनकर हम अवाक रह गए। हमें कुछ भी न सूझा कि मित्र को क्या उत्तर दें कि वुमन डे हर वर्ष केवल एक ही दिन 8 मार्च को ही क्यों ?
अच्छा, फिर मिलते हैं कहकर हमने उनसे विदा ली।
उसके बाद हमने अपने एक की वकील मित्र से महिला दिवस के बारे में विचार पूछे।वे बोले, कानून औरत और आदमी में मौलिक तौर पर कोई भेदभाव नहीं करता।किसी एक ही जुर्म के लिए स्त्री और पुरुष दोनों के लिए से आग समान है।
रही बात हमारी,तो मैं ही नहीं सभी अधिवक्ता पीड़ित व्यक्ति का ही साथ देते हैं।
हां, कभी कभी अपने व्यवसाय और वकालत के पेशे के कारण हम दूसरे पक्ष के केस भी लेने पड़ते हैं। किंतु ईश्वर से यही कामना करते हैं कि न्याय और पीड़ित के पक्ष में निर्णय हो।
हमारे लिए प्रति दिन ही महिला दिवस है।
अब हमने यूनिवर्सिटी की ओर प्रस्थान किया। कालेज के कुछ छात्रों से उनके विचार जाने ।
बी.एस.सी.आर्नस कर रहे छात्र रवि आहूजा ने कहा कि वह तो भुक्त होगी हैं। इसी अप्रैल में द्वितीय वर्ष के विज्ञान के प्रैक्टिकल और प्रोजेक्ट के वायदा में उनके ग्रुप की लड़कियों को अधिक अंक दे दिये गये।एक ही प्रोजेक्ट और विषय-वस्तु, फिर भी उन्हें लड़की होने का सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव और अधिक अंक। यहां पर तो वुमन डे नहीं, वहर वर्ष वुमन यीअर मनाया जाता है।और आप भाई साहब,इनके ऊपर शोषण और इनकी आजादी की बात कहते हैं।आप किस ज़माने में रह रहे हैं ।आप कालेज में किसी ओर भी देख लीजिए,
आपको किसी भी प्रकार से इनका शोषण नहीं दिखाई देगा।
हमसे भी रहा न गया। हमने कहा, लड़कियों के साथ सबसे ज्यादा छेड़खानी और अप्रिय घटनाएं कालेज परिसर के आस पास ही क्यों
होती हैं जिसका कारण सिर्फ युवा छात्र हैं।इस प्रश्न का उसके पास कोई सटीक जवाब नहीं था। उसने अपने लैक्चर अटैंड करने का बहाना बनाया और चल दिया।
अब हमने अंत में सिनेमा हॉल को एक दर्शक से राय जाननी चाही और हम सिनेमा हॉल पहुंच गए। फिल्म समाप्त होने के बाद हमने युवा दर्शकों से वुमन डे के बारे में राय मांगी। उन्होंने कहा कि फिल्म की पटकथा कितनी ही सशक्त क्यों न हो, नग्नता,अश्लील दृश्य और नारी पर पुरुषों द्वारा अत्याचार दिखाया जाता है।यह सब देख युवा वर्ग भ्रमित होता हैं।
और राह चलती लड़की,उसे अपनी बहन नहीं, बल्कि माल दिखाई देती है और वह निम्न स्तर के आचरण पर उतर आता है। छेड़खानी और रेप की बढ़ती घटनाएं सिनेमा और ओ.टी.टी. जैसे मीडिया पर दिखाई जा रही अश्लीलता को ही परिणाम है। हिंदुस्तान में नागरिकों को बिना दंड के जागरूकता नहीं आती। महिला दिवस अत्यंत आवश्यक है। अच्छा हो,इसके
क्रियान्वयन के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
यदि ऐसा न हुआ तो शहर की अधिकतम आबादी भारतीय संस्कृति से बहुत दूर हो जाएगी और स्त्री को भोग्य वस्तु के नजरिए से
देखेगी। नारी समुदाय को भी उसके अंदर छिपे आत्मबल का अहसास कराना होगा जिसके लिए महिला दिवस नारी को सम्मान और चेतना प्रदान करने में एक अच्छा मंच साबित होगा।
मुझे सबके विचार मिल गये थे।यही निष्कर्ष निकाला कि भारतीय परिवेश में अभी पुरुषों की मानसिकता बदलनी होगी।साथ ही महिलाओं को भी अपने अधिकार के प्रति जागरूक रहना होगा एवं किसी प्रकार के शोषण को सहन नहीं करना होगा।
© mere ehsaas