अपनी आत्मा से किया गया वादा
बात उन दिनों की है जब मैं दूसरी या तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। जैसा कि आप जानते ही हैं कि घर में आने जाने वाले रिश्तेदार आते जाते बच्चों को कुछ ना कुछ रुपए दे के जाते हैं। मैं उन पैसों को बहुत ही सहेज कर रखती। हाँ उन दिनों पाँच पैसे, 10 पैसे,25 पैसे, 50 पैसे भी बहुत हुआ करते थे। यूँ कह सकते हैं कि इतने पैसों में ही बच्चा अपने थोड़े मोड़े सपनों को पूरा कर लेता। मेरे सपने भी इन पैसों की तरह उड़ान भरने लगे। हर...