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मंज़िलें और भी हैं....
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नामुमकिन तो कुछ भी नहीं है...

लेकिन हाँ ! जो मुश्किल है, वो पहला कदम उठाने के बाद आसान होने लग जाता है....असफलता की चिंता और शंकाएं सब दूर होने लग जाती है....

जैसे -जैसे कदम बढ़ते हैं हौसला बढ़ता जाता है, कुछ नया करने की इच्छा भी जाग जाती है या फिर पुराने तरीकों को बदलकर कुछ हटकर करने का साहस भी आने लग जाता है।

अपनी गलतियाँ भी नज़र आने लगती है, उन गलतियों को ठीक करने के उपाय भी ढूंढने से मिल ही जाते हैं....

कुछ न कुछ हुनर तो हर इंसान में होता ही है, बस वो हुनर तलाशना है और तराशना है..... उसी हिसाब से अपनी मंज़िल तय करनी है और मंज़िल की तरफ जाते हर रास्ते पर सोच - विचार कर अपने सफ़र का खाका तैयार करना है.....

कुल मिलाकर कहें तो बस अपने comfort zone से बाहर निकलने के बाद बहुत संभावनाएं हैं....कोई भी एक रास्ता पकड़कर बस शुरुआत करने की देरी है...

अगर इतना सब कुछ शुरुआत कर देने के बाद होना ही होता है.... तो हम सोच विचार की दहलीज़ पर ही क्यों अटके हुए रह जाते हैं?



© संवेदना
#motivation
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