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आखिर उसे किसने मारा?
जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी में उस सप्ताह शहर में रोजाना ही बारिश रही थी। लोगों का सर्दी के मारें घरों से निकलना मुश्किल हो रहा था।
उस सर्द शाम को मायाराम जी जो कस्बे के खासा अमीर थे, वो अपने ऑफिस से घर आ रहे थे, तो उनके घर से महज़ 200 मीटर की दूरी पर लगी दुकान से कुछ सामान लेने रुके और वो दुकान से सामान लेकर जैसे ही अपनी कार की तरफ़ आगे बढ़े तभी अचानक से उनका ध्यान फुटपाथ पर लगे टीनशेड में गया , वहां एक गरीब बुज़ुर्ग कुछ फटे पुराने कपड़े लपेटे हुए एक छोटा सा कंबल ओढ़ कर सो रहा था।
उसे देख कर मायाराम जी ने सोचा कि इस हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में ये बाबा कैसे बच पाएंगे?
वो जल्दी जल्दी कदम उठा के बाबा के पास पहुंच जाता है।
मायाराम जी - बाबा! ओ बाबा....
बाबा कंबल हटा कर मायाराम जी की तरफ़ देखते हुए,
बाबा - हाँ भाई!
मायाराम जी - अरे बाबा!... इस पाला कर देने वाली सर्दी में यहां क्यों लेटे हो?
बाबा - अरे भाई.... विधाता ने मेरे नसीब में यों दरबदर ठोकरें खाना लिखा है।
मायाराम जी - क्यों बाबा?... ऐसा क्या हुआ

बाबा ने मायाराम जी को सारी बात बताई कैसे उसके पुत्रों ने जायदाद हथिया कर उसको और उसकी पत्नी को घर से बेदखल कर दिया था।
बाबा की पत्नी इस सदमें से बीमार रहने लगी थी और वो भी चल बसी थी, तब से बाबा फुटपाथ पर ही भिक्षा मांग कर जीवन यापन कर रहे थे।

मायाराम जी बाबा की हालत पर बेहद दुखी होकर बोले कि- बाबा! मैं आपके लिए कुछ खाने के लिए और कुछ ओढ़ने के लिए भेजता हूं।
बाबा - कंबल में सिकुड़ते हुए... शुक्रिया भाई ।
फिर मायाराम जी अपने घर को चले जाते हैं और घर पहुंच कर काम में व्यस्त हो जाते हैं और उस बाबा के बारें में भूल जाते हैं।
सुबह जब मायाराम जी बालकनी में टहल रहे थे तो उनकी नज़र फुटपाथ पर लगी टीन शेड की तरफ़ गया, वहां भीड़ इकट्ठी हो रखी थी।
मायाराम जी का ध्यान उस बाबा की तरफ़ गया जिसे वो रात को मिला था और उसके लिए खाना और कंबल भेजना भी भूल गया था, वो जल्दी जल्दी मकान से नीचे उतर कर बाहर लगी भीड़ की तरफ बढ़ता है। वहां जाकर उनको पता चला कि वो रात वाले बाबा सर्दी में चल बसें थे। जब उन्होंने उसके पास जाकर देखा तो उनका चेहरा पाले से जैसे पौधे मुरझा जाते हैं, वैसे मुरझा गया था।
तभी उनकी नज़र बाबा की जेब से बाहर निकल रहे कागज पर गई..... मायाराम जी उस कागज को निकाल कर जैसे ही पढ़ने लगे तो उनकी आँखे चौड़ी हो गई... उसमें लिखा हुआ था :- इतने दिनों से मैं खुद से अपेक्षा रखता था, आज जिंदगी में मैंने पहली बार किसी और से अपेक्षा की।
मायाराम जी कागज पर लिखी बात को स्वतः ही समझ गए थे और वो कागज पर लिखी लाइन उसे चीख चीख कर कह रही थी कि तुमने हत्या की है मेरी, तुम हत्यारे हो मेरे....।
इतने में वहां पुलिस की गाड़ी आ गई और लोगों से पूछताछ कर बाबा के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया।
फिर भी लोग वहां बात कर रहे थे बाबा इतने सालों से यहां सर्दी, बरसात सब में डटे रहे पर अब की बार इस जनवरी की सर्दी ने बाबा की जान ले ली।
पर मायाराम जी मन को कागज पर लिखी बातें घर कर गई थी।

लोगों के मन में कई सारे सवाल थे, वो एक दूसरे बातें कर रहे थे कि आखिर कैसे बाबा की मौत हुई
क्या ये सर्द रात?
क्या बाबा ने आत्महत्या की होगी?
क्या भूख की वजह से?
या फिर कुछ और जिसकी वजह से बाबा चल बसे।
पर बाबा की मौत की असली वजह सिर्फ मायाराम जी ही जानते थे।

© Mchet143