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मेरा हिस्सा
"मेरा हिस्सा"
अक्सर बंटवारा हर घर और हर शख्स को तोड़ देता है,बंटवारे का दर्द वो ही व्यक्ति समझ सकता हैं जिसने परिवार को प्रेम और स्नेह से सींच कर बड़ा किया हों।आज की कहानी इसी विषय पर आधारित है,पसंद आए तो बताइए और कोई गलती हो तो भी बताइए।

मेरा हिस्सा
ठाकुर राम प्रसाद और उनकी पत्नी हरिबाई आज अपने ही घर में मुलजिम की तरह खड़े थे,उनके तीन बेटे उन पर पक्ष पात का आरोप लगा रहे थे।
बड़ा बेटा सूरज चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि उसने और उसकी पत्नी ने ही सारे काम किए , छोटे भाई बहन की पढ़ाई और ब्याह तक मेरी पत्नी ने ही घर पर सारा काम किया और मै ही परदेश से कमा कर लाता था जिससे सब लोगों का खर्च चलता रहा।
तो क्या मां और बाबूजी बेरोजगार ही रहे तुम परदेश में काम करने गए तो हम भी यहां गांव में कोल्हू का बैल बने हुए काम ही कर रहे थे कोई आवारागर्दी नही करते थे । सुरज की बात का पलटवार करते हुए रमेश ने कहा।
हमको हिस्सा चाहिए मतलब चाहिए।तुम्हारी शादी पहले हुई तो भाभी ने काम किया क्या नया हो गया वो खेत खलिहान तो कभी नहीं गई।
बिल्कुल सही...