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अंजान से जान फ़िर अजनबी होने किं दास्तां -ए -इश्क
भाग - 1
# ये कहानी दो बहनों और एक लड़के की है।
# यहां मैंने लड़के के नज़रिए से कहानी की व्याख्या करने की कोशिश की है ।
# वो लड़का अपनी कहानी बताता है कि कैसे उन तीनों की ज़िन्दगी आपस में उलझ गई और फिर रिश्तों में दूरियां आ गई।

कहानी की शुरुवात वो लड़का कुछ ऐसे करता हैं -
मैं अरमान एक खुशमिजाज और बिंदास रहनेवाला लड़का ज्यादा चुप चुप रहता था और लोगों से कम ही बाते होती थी
गांव से पढ़ाई करने शहर आया ,
नौवीं में दाखिला लिया और ठीक ठाक ही सब चल रहा था ।
दोस्तों के साथ मस्ती और घूमना होता रहता ।
पहले जहा रहता था वो जगह बदलना था इसलिए एक गांव के रिश्तेदार के यहां रहने जाना पड़ा इसी बीच मेरी मुलाकात जिया से हुई थी ।

वो मेरी पहली नज़र का प्यार,
आरज़ू- ए- तमन्ना बन गई थी।
उसे मैं चुपके से देखा करता था,
ख़ामोशी से पढ़ा करता था,
रातों को उसे ही सोचा करता था,
ये बाली उमर का प्यार था,
जो मेरे दिल में घर कर जुनून बन गया था।


कभी उसे अपनी दिल की बात ,सारे जजबात कह भी सकूंगा की नहीं यही ख़्याल जहन में आता रहता था।
उसे देख ही मेरा दिल रफ़्तार से धड़कने लगता,
सांसें भी जोरों से चलने लगती।
वैसे तो हमारी बातें अक्सर कम ही हुआ करती
लेकिन जब भी होती मैं ख़ुश हो बेवजह मुस्काता
ये देख कोई पागल न समझे इसलिए खुद को समझाता भी।
वो मुझसे मोहब्बत नहीं करती मैं जानता था।
वो शायद पसंद किसी और को करती हैं मुझको ऐसा लगता था।
लेकिन मन को सुकून एक तरफ मोहब्बत का था।
जब हमारी जान पहचान हो गई
एक दूसरे से बातें करने लगे।
वो मुझे अपना अच्छा दोस्त कहने लगी।
जो कभी न छूटे वैसा साथ मुझसे चाहती थी,
इतना अच्छा दोस्त मुझको वो मानती थी।
मैं पहला लड़का हूं जिससे उसने बात की ऐसा कहा करती थी।
अपनी ज़िन्दगी की कुछ बातें भी बताया करती थी
वो मेरे नाम से नहीं , आप कह पुकारा करती थी।
बातें करती तो ज्यादा बोला करती ,छोटी छोटी बातें
समझाया करती मैं चुप सा उसकी बातें मन बेमन सुनते जाता।
कुछ ना केहता इसलिए मेरी ख़ामोशी से अंदाज़ा तन्हाई का लगा लेती।
मेरी फ़िक्र उसे होती, हाल मेरा वो पूछा करती।
मैं जो नहीं कहता वो भी वो समझा करती।
एहसास मुझे अपनापन का देती
लेकिन बार बार बस अच्छे दोस्त है कहती रहती।
वो मेरी मोहब्बत और मैं उसका दोस्त बन चुका था।



© The Unique Girl✨❤️